पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२५०

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तांजिकनीलकण्ठी । तुर्य्यास्तपयोरेवंशत्रोयेंगेजयो यः ॥ भयवर्गोपि केंद्रेतत्पतिकृतमुथशिलेबलंज्ञेयम् ॥ ८ ॥ सप्तमेश चतुर्थेशका मुथशिल हो वा योग हो तो शत्रुकी जयहो, दोना- के वर्गस्वामीमें जो केंद्र में स्थानेशसे मुथशिली हो उसका पक्ष बलवान् रहेगा ॥ ८ ॥ ( २४२.) .चरराशौसबलत्वंजित्वाप्रांतेविनाशस्तु ॥ लग्नपतावत्य स्थेप्रष्टानश्यतिपरोस्तपेषष्ठे ॥ ९ ॥ जिसका वर्गेश चरराशि में बलवान्हो वह प्रथमं क्षय हो जायगा, जो लग्नेश बारहवां हो तो छठा हो तो शत्रुनाश होगा ॥ ९ ॥ खपतौलग्नेप्रष्टुस्तुय्यैशेस्तेरिपोःसहायबलम् ।। यन्मुथशिलौवींदूतस्यबलंमूसरिफेहानिः ॥ १० ॥ . दशमेश लग्नमें वा चतुर्थेश छठा हो तो शत्रुकी सेना अपनी सहाय करे सूर्य चन्द्रमा मुथशिली वा मूसरिफी जिसके वर्गेशसे हों उसकी सेना की हानि होवे ॥ १० ॥ शत्रुको जीतकर आपभी नष्ट होगा. जो सप्तमेश परचक्रागमपृच्छाग्रंथांतरे | मार्गान्निवर्त्तते शत्रुः पापैःशत्रुगृहाश्रितैः ॥ चतुर्थगैरपि प्राप्तः शत्रुर्भो निवर्त्तते ॥ ११ ॥ शत्रुके आगमप्रश्नमें पापग्रह छठे हों तो शत्रु मार्गसे हट जावेगा जो चतु- धमें पापग्रह हों तो शत्रु पहुंचभी गयाहो तोभी भागकर हटजायगा ॥११॥ झपालि 'भकर्कटारसातलेयदास्थिताः ॥ ● रिपोः पराजयस्तदा चतुष्पदैः पलायते ॥ १२ ॥ चतुर्थ स्थानमें १२ | ८ | ११ | ४ राशि होतो शत्रुकी हार होवें और चतुष्पदो सहित वा उनकी सवारीमें भाग जावे ॥ १२ ॥ मेघ: सिंहवृषायद्युदयस्थाभवंति हिब्रुकेवा ॥ शत्रोर्निवर्त्तनकराग्रहयुक्तावावियुक्तावा ॥ १३ ॥