पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२६

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( १८ ) ताजिकनीलकण्ठी | . जोडनेसे पंचमभाव और इस भाव जोडनेसे ५१६ की संधि संधिमें जो- डनेसे पष्टभाव. इसमें जोडनेसे सप्तमभाव जो लग्नमें ६ राशि जोडकर हुई. वही मिलजायगी. अब सप्तमभावसे उपरांत लग्नादिकोंमें राशि जोडते जाना. सप्तमादि स्पष्ट होजायँगे, जैसे लग्नमें ६ जोडनेसे सप्तमभाव हुवा है, लग्न धन- संधिमें जोडनेसे सप्तमाष्टमभावकी संधि होगी. एवं द्वितीयभावसे अष्टमभाव, संधिमें सन्धि तृतीयसे नबम सन्धिसे संधि चतुर्थसे दशम संधिसे सन्धि पंचम भावसे लाभभाव सं० से सं॰ छठेमें बारहवां सं से सं० इस प्रकार बारह भावोंके स्पष्ट सन्धियोंसहित होते हैं. अति सुगम होनेसे उदाहरण न लिखा. इन भाव- स्पटोंका प्रयोजन यह है कि ग्रहस्पष्ट जिस भावस्पष्टपर मिले वह यह उसी भावका फल देता है. सन्धिगत यह मिश्रित फल दोनों भावोंका देता है. परंतु यह फल युक्तिसिद्ध है. ग्रंथकर्त्ताकी उक्ति तो यह है कि जो यह स्पष्ट जिस भावस्पष्टके तुल्य है वह उस भावका फल पूर्ण देता है. सन्धिगत ग्रह फल नहीं देता इनके फल अगले तंत्रमें हैं ॥ २४ ॥ २५ ॥ २६ ॥ शालिनी०- युक्तं भोग्यं स्वेष्टकालान्त्रशुद्धेत्रिंशन्निघ्नात्स्वोदय - तं लवाद्यम् ॥ हीनं युक्तं भास्करे तत्तनुः स्याद्रात्रौ लग्नं भाई- युक्ताद्रवेस्तु ॥ २७ ॥ जब इष्टकाल सूर्योदयसे पूर्व वा पश्चात् दो घटी हो अर्थात् लग्न और सूर्य एक राशिमें हों तो पूर्वोक्त विधिसे सूर्यके भुक्त वा भोग्य पला बना कर इष्टकाल पलाओंमें घटे तो घटाय देना. न घंटे तो अल्पेष्टकाल पलाओं को तीससे गुनाकर स्वोदयसे भाग लेना, फल अंशादि तत्काल सू स्पष्ट पूर्वोक्त ऋण धन क्रमसे हीन वा युक्त जैसा संभव हो करना, उपरांत अयनांश घटायके लनस्पष्ट होता है. ऐसे ही दशमं लग्नके लिये नष्ट - काल पलाओंसे करना. रात्रिका इष्टकाल हो तो सूर्य्य स्पष्टमें ६ राशि जोडके पूर्वोक्तविधि करनी. हेतु इसका यह है कि उदयकालिक सूर्य्यसे रात्रि इटकालपर्यंत बहुत लग्नखंड घंटाये जाते हैं इसमें न कुछ .