पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२७

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भाषाटीकासमेतां । (१९) अंतर हो जाताहै छः राशि जोड़नेसे बहुत लमखंड नं घटेंगे अंतर भी नहीं पड़ेगा सुगमता भी है ॥ २७ ॥ अनुष्ट खेटे संधिद्रयांतःस्थे फलं तद्भावजं भवेत् ॥ हीनेऽधिके द्विसंधिभ्यां भावे पूर्वीपरे फलम् ॥ २८ ॥ दो संधियोंके अन्तर्गत जो ग्रह है वह वही भावका फल देता है, और भावकी पूर्वसंधिमें ग्रह घंटै तो पूर्वभावका फल देता है और ग्रहस्पष्ट में परसंधिस्पष्ट चटे तो परभावका फल देता है ॥ २८ ॥ अनु० - ग्रहसंध्यंतरं कायै विंशत्या गुणितं भजे || भावसंध्यन्तरेणाप्तं फलं विंशोपकाः स्मृताः ॥ २९ ॥ ब्रहस्पष्ट जिस भाव में या उसके परसंधिमें हो तो उसी संधि और ग्रहसे अंशादि अंतर करना. उस अंतरको २० से गुनकर भाव और संधिके अंतरसे भाग देकर जो मिले वह विंशोपका बल होता है बलशून्य होने में फलशून्य, चलमध्यममें मध्यम और पूर्णबल में पूर्णफल ग्रह भावका देताहै, ॥ २९ ॥ उपजा० - भौमोशनः सौम्यशशीन वित्सितारेज्यार्किमंदांगिरसो गृहेश्वराः ॥ आद्याः जाद्या रवितोपि सध्यमाः सितातृतीयाः क्रियतो दृ ण : ॥ ३० ॥ 7. दर्षेश के निमित्त बलाबल विचारना चाहिये इसलिये स्वगृह उच्च हद्दा त्रैराशिक मुशलह: पंचवर्गी बलगणनामें प्रथम राशिस्वामी का स्वामी कहते हैं. कि, मेषका स्वामी मंगल, वृषका उशना ( शुक्र, ) मिथुनका बुध, कर्कका चंद्रमा, सिंहका सूर्य, कन्याका बुध, तुलाका शुक्र, वृथ्विक का मंगलं धनका बृहस्पति, मकरका शनि, कुंभका शनि और मीनका बृहस्पति ये राशिस्वामी हैं. द्रेष्काण विभाग को कहते हैं. एकराशिके ३० अंश होते हैं दश दश अंशका एक एक द्रेष्काण होता है. लग्न ग्रहस्पष्ट प्रथम ० १ ० अंश के भीतर हो तो मंगलसे गिनना, १० अंश ऊपर २० के भीतर दूसरा द्रेष्काण हो तो मंगल से छठा मूर्खसे और २० अंश ऊपर ३० के भीतर तीसरा द्रेष्काण हो तो सर्थ्यसे छठा शुक्र से गिनना प्रगट चक्रमें लिखा है ॥ ३० ॥