पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२८

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

(२०) ताजिकनीलकण्ठो | २/३/४/५/६/७/८/९/१०/११/१२/ राशि बु बृ शु श सृ चं नंबु बृ शु श अंश शु श र चं मं बु बृ अंश सृ. चं मं शु श स चं मं बु बृ शु श सृचं मं! अंश लवैः स्युः ॥ इंद्रवज्रा - सूर्य्यादितुंगक्षेमजोक्षनक्रकन्याकुलीरांत्यतुला दिग्भिर्गुणैरष्टयमैः शरैकैर्भूतैर्भसंख्येन॑खसंमितैश्च ॥ ३१ ॥ सूर्यका उच्च मेषके दश अंशपर, चंद्रमा का वृषके ३ अंशपर, एवं मंगल का मकर के २८ पर, बुधका कन्याके १५ अंशपर, बृहस्पतिका कर्केके ५. पर, शुक्रका, मीनके २७ अंशपर, शनिका तुलाके २० अंशपर परमोच्च है ॥ ३१ ॥ यहाः सु. चं. 'O ९ १० ३ २८ ३ नीच. बु. ३ ५ ११ १५ बृ. ३ ५ ९ ५ शु. श. ९१ ७६ २७ २० ५ २७२० ० १० "पंजा० -तत्सप्तमं नीचमनेन होनो यहोऽधिक श्चेद्रसभा- द्विशोध्यः || चक्रात्तदंशाङ्कलवो बलं स्यात्क्रियेणतौलींदु- भतो नवांशाः ॥ ३२ ॥ उच्चराश्यंशक पूर्व लोकमें कहे गये उससे सप्तम नीच होता है. उच्चराश्वंश- कमें ६ राशि जोडनेसे नीचराश्वंश परम होता है. उच्च बलकी विधि कहते हैं ग्रहके नीच स्पष्टको तत्काल स्पष्ट ग्रहमें घटा देना न घंटे तो ग्रहस्पष्ट में १२ जोडके घटाना, शेष ६ राशिसे ऊपर हो तो १२ में घटाके षड्भाल्प कर लेना, फिर उसका अंशादि करके ९ का भाग देना, लब्धि उबबल होता है. उदाहरण संवत् १९४३ वैशाखकृष्ण द्वादशी शनिवारको इष्ट घटी १३ पल ५४ सूर्यस्पष्ट ००।१८।४२१३१ सूर्य्यका उच्चस्पष्ट १०।०।० नीचस्पष्ट ६ । १० १० १० को रविस्पष्ट में घटाया शेष ६ । ८ । २ । ३१ इसको १२ में घटाके षड्भाल्प किया ५ | २१ । १७ । २९