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भूमिका । अहो ! ईश्वरने ज्योतिषशास्त्र संसार में कैसा अद्वितीय रत्न दिया है जिसके प्रभावसे मनुष्य पुराकृत और अर्वाक्तन जो अपने कृतकर्म और उनका परिणाम है संपूर्ण जान सकते हैं. इस अपार संसार में समस्त वस्तुमात्र उद्यमी मनुष्यके हस्तंगत हैं. ऐसा कोई पदार्थ नहीं कि, जिससे बुद्धिबलवाला मनुष्य न जान सके वा न करंसके. केवल जन्म और मरण मनुष्यके अगोचर हैं इसीसे ईश्वरकी ईश्वरता विदित होती है. परंत ज्योतिषशास्त्र ऐसा अनमोलमणि है

किं, जिसकी सलाई नेत्रों में देनेसे परोक्षीय जन्ममरणभी प्रत्यक्ष दिखाई

देते हैं. ब्रह्माजीने जब वेदके चार भाग कर दिये तब उसके अंग "शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द,ज्योतिष" ये छः-शास्त्र बनायें इनमें से प्रत्यक्ष तात्पर्य और चमत्कृत होने से ज्योतिष शिरोमणि गिना जाता है. अब ऐसा समय आया कि, वह ऐसा अद्वितीय रत्न शिरोमणि कैसा गिरता पड़ता दूर भागता जाता है. कोई इसे पूछताभी नहीं कि, आप कहांके और कौन हैं. कदाचित् किसीने पहचान लिया तो भर्त्सना करता है कि हां ! + तू वही है जिसने हमारे पितृपितामहादिकों को अपने चमत्काररूपी प्रपंच में लुभाकर समस्त धन तन दान धर्म्मादि व्यर्थ कायोंमें व्ययकरायके उन्हें अधोगामी और हमारे तिरस्कार योग्य करदिया, तेरे प्रपंचमें वे नहीं • फँसते तो उनका उपार्जित द्रव्य सब हमहींको अनायास मिलनाथा. हमें अनेक प्रकार के परिश्रम आजीवनार्थ क्यों करने पडते. अब हम तो तेरा आदर क्या करेंगे. बाप दादे अज्ञान हुये तो हुये अब हम तो कभी न भूलेंगे, जाइये अपनी इज्जत बचाइये "कुछआगेबढ़कर" एक और महाशय मिले. देख- कर बोल उठे कि, अजी साहब ! अलग ही अलग चले जाइये अपना परछावां हमारे ऊपर न पड़ने दीजिये तुम अमंगली हो: हमने सुना है कि, हमारे माताके विवाहपूर्व तुम्हारे अंजन नेत्रवाले किसीने कहाया किं. इस कन्याके वैधव्ययो- ग है अकस्मात विवाहोत्तर अल्पकाल में बैसाही होगया. उपरांत उसी वैधव्य 'योगवालीके गर्भसे हम ऐसे हृष्ट पुष्ट और शास्त्रज्ञ पैदा हैं कि, को कभी विध-