पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/३१

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1. भाषाटीकासमेता । (२३) - पंचवर्गी बलके न्यास इस प्रकारहैं, कि, गृहबलमें ३० विश्वेबल पाता है, उच्चबलमें २० विश्वे, हद्दामें १५ विश्वे, द्रेष्काणमें १० विश्वे और मुशल्ल - हमें ५ विश्वे; इन सबमें मिले हुये जोड़के ४ भाग देनेसे लब्ध विशोषक बल होताहै ॥ ३९ ॥ हद्दाचक्रम् । मे वृ |मिक | सिंक | तु | वृ | ध | म कुं| मी राशयः शु बु मंबू बुश मं बृ बु बु ६७ ७ 1 low w kw| 100V 1-1555-2 to wo: शु शु वुभ्र बृ बु श ८५ शमं श km) Foru E 1210 30 5 199 20 59 JH. oc (24 to our w 25 10 9 20 "क" x 24 624 6 16 aur 1 20 10 Janw9 ९ शश मंश श ४४५२ ग्रहाः अंशाः तथा तथा तथा तथा इंद्रवज्रा - स्वस्वाधिकारोक्तबलं हृद्धे पादोनम समभेरिभेङ्गिः ॥ एवं समानीय बलं तदैक्ये वेदोद्धृते हीनबलः शरोनः ॥ ४० ॥ - । O पूर्वश्लोकोक्त पंचवर्गी बलका नियम है कि, यह अपने गृहादि अधिकारों में पूर्ण बल और मित्रकेमें चौथाई कम, समग्रहके में आधा, शत्रुके अधिकार में चतुर्थांश बल पाताहै. जैसे पहिले स्थानवलमें अपनी राशिका ग्रह पूरे ३०।० बल और मित्र राशिमें पादोन २२ । ३० समकी राशिमें आधा १५ । • शत्रु राशिमें चौथाई ७ । ३० पाता है. दूसरे उच्चबलमें परमोच्चपर पूरे २० १० और परम नीचमें ● | ० बीचके राशियों में अंतर करनेसे मिलता है. उसकी विधि ( ३२ ) श्लोक (तत्सतमं नीचमनेन होने- त्यादि ) में कहागयाहै ( तीसरे ) हद्दाबलमें अपनी हद्दाका ग्रह १५ । ० पूरा और मित्रहद्दामें पादोन ११ | १५ में आधा ७ | ३० शत्रुमें चौ थाई ३ | ४५ बल पाता है. चौथे द्रेष्काण बलमें अपने द्रेष्काणका ग्रह पूरे और मित्रद्रेष्काणमें पादोन ७ | ३० सम आधा ५ | ० शत्रुमें १०।०