पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/३२

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( २४ ) ताजिकनीलकण्ठी | चौथाई २ । ३० पांचवाँ ( सुशह ) नवांश अपने नवांशका पूरे ५ । ० वल मित्रका पादोन ३ | ४५ सममें आधा २ । ३० शत्रुनवांश में चौथाई १ | १५ बल पाता है. इस प्रकार पांचों बल लेकर सबका ऐक्य एक जुदे ( कोठमें स्थापन करना, उसमें ४ से भाग लेकर लाभ विंशोपका- मल होता है. उसे भी जुदे जुदे स्थानों में स्थापन करता ग्रह ५

अंक पर्यन्त निकट बल ५ से

  • १० पर्यन्त हीनबल १० से१५

0 मित्र सम ३० २० 0 ० २२ उच्च | हृद्दा | द्रेष्का./नवांश | १५ ७ उपरांत अनुपात से 202293 ११ 0 ७ (2) D' ० na-a २ ३० 6

शत्रु ४५ लों मध्य बल १५ से २० लों पूर्ण बली कहाता है, जैसा जिसका बल वैसा ही फलभी देता है ॥ ४० ॥ शालिनी क्षेत्र होरा व्यब्धिपंचांगसप्तवस्वंकांशेशाकंभागास्सुधीभिः॥ विज्ञातव्या लग्नसंस्थाः शुभान वर्गाः श्रेष्ठाः पापवर्गास्त्वनिष्टाः॥४१॥ अब द्वादशवर्गी बल कहते हैं. राशि १ होरा २ द्रेष्काण ३ चतुर्थांश ४ पंचमांश षष्ठांश ६ सप्तमांश ७ अष्टमांश ८ नवमांश ९ दशमांश १० एका- दशांश ११ द्वादशांश १२ ये द्वादश वर्ग हैं. पापवर्ग और शुभ वर्ग अलग करके देखना, शुभवर्ग अधिक पापवर्ग हीन हो तो वह वर्ष शुभ होगा, विप-

रीत होनेमें फलभी विपरीत होता है ॥ ४१ ॥

इन्द्रक० - ओज़े रवींद्रोः सम इंदुरव्योहोरे गृहार्द्धप्रमिते विचिन्त्ये ॥ देष्काणा: स्वेषु नवर्क्षनाथास्तुयशपाः स्वक्षंजकेंद्रनाथाः ॥ ४२ ॥ प्रथमवर्ग राशीश हैं. यहां आचार्य्यने पंचवर्गी प्रकरण ३० वें श्लोकमें कह दिया है. ग्रन्थांतरोंमें, "भौमशुक्रज्ञचंद्रा कंबुधशुक्रारमंत्रिणः ॥ शौरिश्शनि- स्तथा जीवो मेषादीनामधीश्वराः ॥ " ऐसा है. प्रयोजन वही है १. दुसरा बल होरा विषम राशिके १५ अंश पर्यन्त सूकी १५ उपरांत चंद्र- माकी समराशियें १५ अंश पर्यंत चंद्रमाकी १५ से ३० पर्वत सूर्यकी होरा ०