पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/३३

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भाषाटीकासमेता । (२५) १ होती है. तीसरा, द्वेष्काण प्रथम १० अंश पर्यंत उस राशिसे नवमीं राशिके स्वामीका द्रेष्काण होता है. इसीको त्रिभाग भी कहतेहैं. चौथा, चतु- अंश १ राशिके ४ चारोंभागों में ४ केंद्रोंके स्वामी जैसे ७।३० अंशप- य्यैत उसी राशि के स्वामीका ७ १३० से १५ अंश त उस राशिसे चौथी राशि स्वामीका १५ से २२ । ३० लो उससे सातवीं राशिके स्वानीका २२ । ३० से ३० ।० पर्यंत उससे दशवीं राशिके स्वामीका चतुर्थीश होताहै ॥ ४२ ॥ अनु० - ओज पंचमांशशा: कुजार्कीज्यज्ञभार्गवाः || समभे व्यत्ययाज्ज्ञेया द्वादशांशाः स्वभात्स्मृताः ॥ १३ ॥ पाँचवा, पंचमांश विषम राशिमें ६ अंश पर्यंत मंगलका ६ से १२ पु- र्यंत शनिका १२ से १८ लों बृहस्पति १८ से २४लों बुधका २४ से ३० लों शुक्रका, और समराशिमें विपरीत ६ अंशपर्यंत शुक्रका ६ से १२ लों बुधका १२ से १८ लों बृहस्पतिका १८ से २४ पर्यंत शनिका २४ से ३० लों मंगलका पंचमांश होता है. बारहवां ( द्वादशांश ) १ राशिके बारह विभाग २ अंश ३० कला होते हैं. जितने भागमें स्पष्ट स्वराशिसे उतने संख्यक राशि स्वामीका द्वादशांश होताहै ॥ ४३ ॥ उपजा॰-लवीकृतो व्योमचरोंगशैलवस्वंकदिशद्रगुणाः खरामैः।। भक्तो गतास्तर्कनगाष्टनंददिशुद्रभागाः कुयुताः क्रियात्स्युः ॥४४॥ पूर्व ६ । ७ १८ १९ | १० | ११ अंश छोडकर द्वादशांश कह दिया. अब इनके लिये यह रीति है कि लग्नादिभाव वा ग्रहस्पष्टकी - राशिको ३० से गुनाकर अंश छोडदिया. सभी अंश होगये. उपरांत षष्ठां-

शको ६ से सप्तमांशको ७ से अष्टमांशको ८ से नवमांशको ९ से दशमां- शको १० से एकादशांशको ११ से गुणाकर ३० से भाग लिया लब्धि छोडना शेष १ जोडके वर्त्तमान अंशेश होता है १२ से अधिक तो ३२ से शेष करदेना. यह टोकार्थ है. प्रकट यह है कि षष्ठांशको ३०