पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/३६

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(२८) ताजिकनीलकण्ठी | अनु० - एवं द्वादशवर्गी स्याद्रहाणां बलसिद्धये ॥ स्वोच्चमित्रशुभाः श्रेष्ठा नीचारिक्रूरतोऽशुभाः ॥ ४५ ॥ इस प्रकार के वल सांधने के लिये द्वादशवगीं है, शुभग्रह और अपने उच्चगत ग्रह मित्र राशिस्थ ग्रह शुभ होता है, पापग्रह और नीचराशि- शत्रुराशिगत ग्रह अशुभ होता है. उच्च वा मित्र क्षेत्रगत ग्रह पाप भी शुभ पंक्ति में और नीच राशिगत शुभ भी पापपंक्ति में गिना जाता है. शुभपंक्ति अधिक होनेमें शुभ, अशुभ पंक्ति अधिक होने में अशुभ द्वादशवर्गी कहाती है. ऐसेही फल भी जानना ॥ ४५ ॥ उपजा-एवं ग्रहाणां शुभपापवर्गपंक्तिद्वयं वीक्ष्य शुभाधिकत्वे ॥ दशाफलं भावफलं च वाच्यं शुभं त्वनिष्टं त्वशुभाधिकत्वे ॥४६॥ इस प्रकार गृह होरादि द्वादश वर्ग स्थापन करके शुभ पंक्ति जुदी पाप ‘पंक्ति जुदी स्थापन करनी; शुभपंक्ति अधिक हो तो वह ग्रह दशाफल और भावफल शुभ देगा, पापपंक्ति अधिक हो तो अनिष्ट फल देगा यही विचार द्वादशव है ॥ ४६॥ उपजां०- रोपि सौम्याधिकवर्गशाली भोतिसौम्यः शुभखेच- रश्वेत्।। सौम्योपि पापाधिकवर्गयोगानेष्ट तेनिंद्यः खलु पापखेटः४ ॥ शुभग्रह शुभ वर्गाधिक हो तो अति शुभ होता है. पापवर्गाधिक होनेसे सौम्यभी निंय होता है. ऐसेही पापग्रह शुभ वर्गाधिक होनेसे शुभ और पाप वर्गाधिक होनेस अति निंय होता है. द्वादशवर्ग में भी यही विचार मुख्य है॥४७॥ उपजा ० - राशीशमित्र रिपुक्रमेण चिंत्यस्तनोस्तच्च तथैव युक्त्या || भावेषु सर्वेष्वपि वर्गचक्रं विलोक्य तत्तत्फलमूहनीयम् ॥ ४८ ॥ बहोंकी द्वादशवर्गी २ पंक्ति करके भावोंके साथ उनका संबंध देखना चाहिये. जैसे -- लग्नेश शुभग्रह शुभ राशिमें वा मित्रराशि वा उच्च राशिमें स्थित हो तो लग्न शुभवर्गाधिक भया. इससे लग्नसंबन्धी सभी शुभ फल होंगे, जो लन्न पापारिकवर्ग हो और उसका स्वामी पाप या पापराशिगत का शत्रु राशि वा नीचराशिमें हो तो लग्नसंवन्धी अनिष्ट फल अधिक होगा. .