पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/३७

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भाषाटीकासमेत्ता | ( २९ ) जहां एक प्रकार शुभ एक प्रकार अशुभ होंगे; जैसे- लग्नेश शुभ शुभराशिमें नीच वा शत्रुराशिस्थ हो अथवा लग्नेश पाप मित्रोच्च राशिस्थित हो तो मिश्र फल कहना. ऐसे ही द्वितीय तृतीय भावादिकोंसे भावसंबंधी फल • विचारना. किस भाव में कौन २ विचार चाहिये यह आगे कहते हैं ॥४८॥ अनु० - शरीरवर्णचिह्नायुर्वयोमानं सुखासुखम् || जातिः शीलं च मतिमामात्सर्वं विचितयेत् ॥ ४९ ॥ तनु १ धन २ सहज ३ सुहत ४ सुत परिपु६ जाया ७ मृत्यु ८धर्म ९ कर्म १० आय ११ | व्यय १२ ये द्वाहश भावों के नाम हैं. लग्नमें शरीरका शुभाशुभ कृशता वा पुष्टता वर्ण रक्तश्वेतादि ( रंग ) मशक तिलादि चिह्न, आयु बालं यौवनादि, अवस्था लघुदीर्घादि मान, बल (पराक्रम) सुखदुःख, ब्राह्मणादि जाति और आचरण इतने विचार करना यहां लक्षणमात्र कहा है बुद्धिमे विशेष इन्हींमें जानलेना ॥ ४९ ॥ : अनु० - सुवर्णरौप्यरत्नानि धातुव्यं सखा धने | विक्रमे भ्रातृभृत्याध्वपित्र्य स्खलितसाहसम् ॥ ५० ॥ सुवर्ण, चांदी, रत्नजात, लोहा, शीशकादि धातु, धनादि और मित्र उपलक्षणसे वस्त्र, मोती, पशु आदि धनसंज्ञक वस्तु इतनोंका विचार धनभाव से करना, और भाई, भगिनी, नाकर, मार्ग, पैत्रिक कर्मकी हानि, साहस, उपलक्षणसे व्यापार · पराक्रम, उद्यमादि इतनोंका विचार सहजभावसे करना ॥ ५० ॥ अनु० - पितृवित्तं निधि क्षेत्रं 'भूमिं च तुर्यतः ॥ . पुत्रे मंत्रधनोपाय गभविद्यात्मजेक्षणम् ॥ ५१ ॥ पितृसंबंधि वित्त शेवधि ( हँडेडा ) खेती आदि भूमि कर्म, घर उपलक्षण से जलज कर्म, भूमिशोधनादि, पाताल कर्म, माता सौख्य, मित्र बांधव, वाहन ( यानादि ) चतुर्थभावसे विचारना, और पुत्र मंत्र धन उपाय गर्भस्थिति विद्या संतान वृद्धि बंध उदरकर्म विनयादि पंचमगावसे विचारना. यहां पुत्रः आत्मज जो वाक्य एकही अर्थ के लिखे हैं इसका हेतु यह है कि दत्तकादि बारह प्रकारके पुत्र होते हैं आत्मज औरस ही होताहै ॥ ८५१ ॥ 2