पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/३८

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

( ३० ) ताजिकनीलकण्ठी | अनु० - रिपौमातृलमांधारिचतुप्पाद्वंधभविणान् || द्यूने कलन्नवाणिज्यनष्टविस्मृतिसंकथा ॥ ५२ ॥ छठे भावमें मातुल ( माताके भाई,) रोग, शत्रु, चौपाया, पराश्रय, भय, ( व्रण ) विस्फोटकादिसे घावका दाग, और समम भावमें की व्यापार ( न- टता ) कुछ वस्तु खोयेजानेका विषय, विस्मरण, भूलका विचार करना. लममें शरीरके तुल्य सप्तममें के शरीरका विचार है, ऐसेही चतुर्थसे, मातृ- शरीर, दशमसे पिता, पंचमसे पुत्रका इत्यादि जानना ॥ ५२ ।। अनु० - हृताध्वकालमार्गादि चिंत्यं द्यूने ग्रहोऽशुभः || मृत्यौ चिरंतनं व्यं मृतवित्तं रणो रिपुः ॥ ५३ ॥ · दुर्गस्थानं तिर्नष्टंपरीवारो मनोव्यथा || सतमस्थान में और भी विचार विशेष है कि चोरीकी वस्तु, कलह, मार्ग, कामी विचार इसी भावसे होता है. और ७ में सभी ग्रह अशुभ हैं अष्टमभा- व पूर्वसंचित द्रव्य, आयु, धन, ऋण, संग्राम, शत्रु कोट दुर्गादि ( कठिन स्थान ) मृत्यु द्रव्यादि नष्ट, मानसी व्यथा इतना विचार है ॥ ५३ ॥ अनु - धर्मेरतिस्तथापन्थाधमोपायं च चिंतयेत् ॥५४ ॥ व्योम्नमुद्रां परं पुण्यं राज्यं वृद्धिं च पैतृकम् || नवम भावमें धर्मकार्य में प्रीति अप्रीति मार्ग पुण्य पाप भाग्य ऐश्वर्ण्यका विचार ॥ ५४ ॥ और दशम स्थानमें मुद्रा (मोहर) पुण्यकर्म, राज्यवृद्धि, पितृ- द्रव्य, और पितृशरीर इतने विचार करने | अनु० - आये सर्वार्थधान्यार्घकन्यामित्रचतुष्पदाः ॥ ५५ ॥ राज्ञोवित्तं परीवारलाभोपायांच भूरिशः ॥ व्ययैवैरिनिरोधार्त्तिव्ययादि परिचिंतयेत् ॥ ५६ ॥ गुप्त प्रकट धन, सुवर्ण, मणि, मुक्तादिकोंका लाभ, चतुष्पद, राजद्रव्य, मित्र, परिवार, कन्या, भूषण वस्त्रादि अनेक वस्तुओंका लाभ, हानि ग्यारहवें भावसे विचारना. बारहवें भावमें शत्रु का निरोध. पीडा. धनव्यय. नेत्र कर्ण रोगादि और नीच र्म इत्यादि विचार करना ॥ ५५ ॥ ५६ ॥