पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/३९

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भाषाटीकासमेता । अतु०-लगांबुधूनकर्म्माणि केंद्रमुक्तं च कंटकम् || चतुष्टयं चात्र खेटो बली लो विशेषतः ॥ ५७ ॥ ( ३१ ) 1 लग्न १ चतुर्थ ४ सप्तम ७ दशम ११ इन भावों की संज्ञा केंद्रकंटक और चतुष्टय है चकारसे अनुक्त यहभी भास होता है कि केंद्रोंसे द्वितीयस्थान २ । ५ । ८ । ११ एणफर और इनसे भी दूसरे ३ । ६ । ९ । १२ ये आपोकिम कहते हैं केंद्र में जो ग्रह है वह बली होता है केंद्रों में भी लग्नका विशेष बलवान् होताहै जन्म वर्ष प्रश्न मुहूर्त्तादिकों में ऐसेही सर्वत्र करना चाहिये ॥ ५७ ॥ विचार . अनु०-लग्नकर्मास्ततुर्य्यायसुतांकस्थो बली ग्रहः ॥ यथादिमं विशेषेण सत्रिवित्ते चंद्रमाः ॥ ५८ ॥ 1 बलवान् ग्रह लग्न १ कर्म १० अस्त ७ तुर्य्य ४ आय ११ सुत ५ अंक९ इन स्थानों में अधिक बली होकर शुभफल अधिक देताहै इसमें भी विशेष यह है कि, नवम की अपेक्षा पंचम इससे ग्यारहवां ग्यारहवेंसे चतुर्थ चतुर्थ सप्तम सप्तमसे दशम दशमसे लग्नका क्रमसे अधिक बली होता है. यह नैस - र्गिक बलहै. और चन्द्रमा नवमें द्वितीय भावोंमें भी पूर्वोक्तभावों के तुल्य बली होता है इमसें भी द्वितीय से नवम विशेष है ॥ ५८ ॥ अनु० - कुजः सत्रि पृच्छायां सूतौचान्यत्रचिंतयेत् ॥ भावानवेत्थं शस्ताःस्युः स्वामिसौम्यैयुतक्षिताः ॥ ५९ ॥ .". पूर्वोक्तभावों से विशेष मंगल नवम भावमेभी बलाधिक होता है. यहवि चार प्रश्न जन्म और वर्षमुहूर्त्तादिकोमें सर्वत्र करना ये भावशुभ हैं इनमें ग्रह होकर शुभ फल अधिक देता है और अपने स्वामी व शुभ ग्रहसे युक्त जो भावहै वह अपने संबंधी फलको अच्छा देता है. स्वामी और शुभ ग्रह युक्त वा दृष्ट न हो तो अपना (फल) मध्यम न अतिशुभ न अति नेष्ट