पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/४०

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(३२) ताजिकनीलकण्ठी | देता है. जब पापग्रह और स्वामीके शत्रुग्रहसे भावयुक्त वा दृष्ट हो तो अपने फलोकों ( अनिष्ट ) बुरा करदेता है, जब स्वामीसे अन्य ग्रह कुछ शुभ और कुछ अशुभ हो तो मिश्रफल देता है जब भले या बुरे किसी ग्रहत्ते युक्त वा दृष्ट न हो तो मध्यम फल देताहै ॥ ५९ ॥ अनु० दीप्तांशातिक्रमेशस्ताइमेपीति विचिन्तयेत् ॥ ६० ॥ पूर्वोक्त स्वामी शुभग्रह योगदृष्टि में बुध बृहस्पतिके योगदृष्टि में चन्द्रमा शुक्रकी अपेक्षा से विशेष शुभ होता है. रिष्फ १२ अष्ट ८ रिपु ६ये स्थान नेष्ट हैं इनको त्रिकभी कहते हैं इसमें ग्रहबल हीन होकर अशुभ फल वि शेष देता है इनमें ग्रह अपने दीप्तांशों के भीतर उक्त फल देता है जब दीप्तांश से अधिक अंशपर पहुँच जाय तो अशुभ फल नहीं देता दीतांश सूर्य्य के १५ चन्द्रमाके १२ मंगलके ८ बुधके ७ बृहस्पति ९ शुक्रके ७ शनिके ९ इस प्रकार सर्वत्र भाव तथा ग्रहों की प्रीति विचारनी ॥ ६० ॥ उपजाति- त्रिराशिपाःसूर्यसितार्किशुका दिनेनिशीज्येंदु- बुधक्षमाजाः || मेषाच्चतुर्णी हरिभाद्विलोमं नित्यं परेप्वा- र्किकुजेज्यचंद्राः ॥ ६१ ॥ अब त्रिराशीश कहते हैं, मेवसे कर्क लौं सिंहसे वृश्चिक लौं धनसे मीन पर्येत राशिचक्र के ३ भाग हुये इससे त्रिराशीश नाम हुआ इनके स्वामी ऐसे हैं कि दिनके वर्षप्रवेशमें मेपका सूर्ण्य, वृषका शुक्र, मिथुन का शनि, कर्क का शुक्र और रात्रिवर्षप्रवेश में मेपका बृहस्पति, वृपका चंद्रमा, मिथुनका बुध, कर्कका मंगल, अब सिंहसे विपरीत अर्थात मेषादिकोंके जो दिनके वे सिंहादिकोंके रात्रिके और रात्रिवाले दिनके जैसे दिनके सिंहका गुरु, कन्याका चंद्रमा, तुलाका बुध, वृश्चिकका मंगल, उपरांत धनका शनि मक- रका मंगल, कुंभका बृहस्पति, मोनका चंद्रमा ये दिन रात्रिके वही स्वामी हैं जिसका विस्तार चक्र में भी लिखा है ॥ ६१ ॥