पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/४१

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• भाषाटीकासमेता । . १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० १११२ शुशशु बृचं डु 11. राशि. चं दिनमें वृचं रात्रिमें ( ३३ ) वुमंसू शु श शु श ( अनु० ) वर्षेशार्थदिननिशाविभागोक्तास्त्रिराशिपाः ॥ पंचवर्गीबला द्यर्थद्रेष्काणेशान्विचितयेत् ॥ ६२ ॥ एकतो त्रिराशीश, द्रेष्काणको कहते हैं. दूसरे मेषादि दिनरात्रिविभाग- कोभी त्रिराशीश कहते हैं. इसमें कौनसा लेना इस लिये यह श्लोक है कि, दिनरात्रि विभागका त्रिराशीश तो वर्षेश निर्णयको लेना. क्योंकि पंचवर्गीमें अधिकंबली वर्षेश होताहै. परंतु पंचाधिकारियोंमें नहीं होगा तो वर्षेश नहीं होता. पंचाधिकारी जन्मलग्नेश वर्षलग्नेश मुन्थेश त्रिराशीश दिनमें सूर्य राशिपति रात्रिवर्ष प्रवेशमें चंद्रमाके राशीशये ५ होतें हैं, इन्हीके बीचका कोई जिसकी लग्नपर दृष्टि अधिक होने वह वर्षेश होता हैं. पंचवर्गी वर्गमें बली हो तो विशेष है हीनबली मध्यबळी हो तोभी पंचाधिकारियोंमेंसे लग्नपर दृष्टिवाला वर्षेश होताहै. कहीं चंद्रमा वर्षेश नहीं होता है ऐसाभी लिखा है, जहां सर्व- था चंद्रमाहीकी प्राप्ति वर्षेश होनेकी हो तो कैसे करना. इसकी व्यवस्था ऐसी है कि, चंद्रमा जिसके साथ इत्थशाल कर्त्ताहो वहवर्षेश होगा. फल चंद्रमाके तुल्य देगा. चंद्रमा स्वयं वर्षेश तोभी नहीं होता. दूसरे त्रिराशीश द्रेष्काण कोभी कहते हैं वह पंचवर्गीवलमें लेना यहां पंचाधिकारियोंमें त्रिराशीश इत्यादि. यही लेना ॥ ६२ ॥ ( शार्दूलविक्रीडित ) - श्रीगन्वयभूषणं गणितविञ्चितामणिस्त- त्सुतोऽनंतो नंतमतिर्व्यधात्खलमतध्वस्त्यैजनुः पद्धतिम् ॥ तत्सूनुः खलु नीलकंठविबुधो विद्वच्छिवानुज्ञया संतुष्टयैव्यदधाद्रहप्रकरणं संज्ञाविवेकेऽमलम् ॥ ६३ ॥ ग्रंथकर्ता अध्याय के स्थान में अपने नामादि श्लोकसे प्रकाश कतीहै कि, ३