पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/४३

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भाषाटीकासमेता ( ३५.) (उप ० ) - भौमस्तमः पित्त वोग्रवन्योमध्याह्नधातुर्यमदि, चतुष्पात् it नाराट्चतुष्कोणसुवर्णकारोदग्धावनीव्यंगकटुश्च रक्तः ॥ ३ ॥

मंगल तमोगुणी. पित्त प्रकृति युवावस्था, उग्र, पापग्रह, वनचारी, मध्या-

लंबली. धातु प्रधान. दक्षिण दिशाका स्वामी, चौपाया पुरुष ग्रह. राजा यदा क्षत्रियजाति. चौकोण रूप. स्वर्णकारादियोंका स्वामी दग्धभूमिचारी अंगहीन. कड़वारसप्रिय ताम्रवर्ण ताम्रादिद्रव्यका स्वामी. इतने • मंगलकेहैं ॥ ३ ॥ . े 1 - (उप ० ) ग्राम्यः शुभोनीलसुवर्णवृत्तः शिश्वि कोच्चः समधातुर्ज :॥ श्मशानयोषोत्तरदिक्प्रभातं शूद्रः खगः सर्वरसो रजो: ॥ ४ ॥ बुध ग्राम्य सौम्यग्रह नीलरंग सुवर्णधातुका स्वामी ( वर्तुल ) वृत्ता- कार बाल्यावस्था ईंटोंसे ऊंची भूमिका चारी, सम धांतुजीव वात पित्त कफ तीनों बराबर जीवरक्षा करनेवाला श्मशानवासी ग्रिह उत्तर दिशाका स्वामी प्रातः कालबली शुद्रवर्ण पक्षिजाति कटुकादि सर्व रसप्रधान रजोगुणी है ॥ ४ ॥ उप० - गुरुः प्रभाते नृशुभेशदिग्विजः पीतो द्विपाद्ब्राम्य त्तजीवः ॥ वाणिज्यमाधुर्य रालयेशो वृद्धः सुरत्नं समधातुसत्त्वम् ॥ ५ ॥ बृहस्पति प्रातः काल बली, पुरुष, सौम्यग्रह, ईशान दिशाका स्वामी ब्रा णवर्ण, पीतरंग, दोपैया, ग्रामांतरचारी, सुवृत्ताकृति, जीवप्रधान, वाणिज्य का स्वामी मधुर रसप्रिय देवतालय स्वामी, वृद्धावस्था, पुष्परागादि सुरत्न स्वामी, समधातु ( वातपित्तकफात्मक ) सत्त्वगुण प्रधान है ॥ ५ ॥ उपजाति - शुक्रः शुभः जिलगोपरा : श्वेतः कफी रूप्यरजोम्लमू- लम् ॥ विप्रो दिङ्मध्यवयोरतीशोजलावानः स्त्रिग्धरुचिद्विपाञ्च ॥ ६ ॥ शुक्र सौम्यग्रह स्त्री जलचारी अपराह्नवली श्वेतवर्ण कफप्रकृति रूपा धातु रजोगुणी. खट्टा रसप्रिय मूल वस्तुस्वामी ब्राह्मण वर्ण आय दिशाका स्वामी युवावस्था. रति क्रीडारसप्रियः जलमयभूमिवासी कोमल. चपु द्विपाद मनुष्यजाति है ॥ ६ ॥ -