पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/४४

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ताजिकनीलकण्ठी | उपजाति–शनिर्विहंगोनिलवन्यसंध्या शूद्रांगनाधातुसमः स्थिर || .: प्रतीचीतुवरोतिवृद्धोत्करंक्षितीड् दीर्घसुनीललोहम् ॥ ७ ॥ शाने पक्षिजाति, वायु प्रकृति वनवासी संध्यावली शुद्रजाति. स्त्रीह समधातु. स्थिर क्रूर पश्चिम दिशाका स्वामी कृपाय ( काथ कांजिक आदि ) रसप्रिय. अतिवृद्धावस्था उत्कर भूमिका स्वामी दीर्घाकृति मुन्दरनी - लवर्ण लोहधातु. ऐसा रूप शनिकाहै ॥ ७ ॥ - उपजाति - राहुस्वरूपंशनिवन्निपादजातिर्भुजंगोस्थिपनैर्ऋतीशः ॥ केतुः शिखी तद्वदनेकरूपः खगस्वरूपात्फलमित्थमूह्यम् ॥ ८ ॥ (३६) राहुका स्वरूप शनिके तुल्य है. परन्तु निषाद जाति. सर्पाकार मृत हड्डियों का स्वामी नैर्ऋत्यदिशाका स्वामी इतना विशेपहे. और केतुका रूप शनि यद्वा राहुके तुल्य है. परन्तु शिखाबान और तुल्य बढस्वरूपवाला है इतना विशेष है, ग्रहस्वरूपका प्रयोजन जैसे राशि स्वरूपादि बतलानेमें, ब्राह्मणादि जाति, बाल्यादि अवस्था, ग्रामारण्यादि स्थानज्ञान, वाग्वादि प्रकृति. चतुरस्रादि आकृति पाटलादि वर्ण विचार कहते हैं अथवा कैसा शत्रु वा मित्र मिलेगा, इत्यादि प्रश्नमेंभी यही विचार है बलवान् ग्रहके सदृश मूर्ति और ताम्रादि धातु. जन्म वर्ष यात्राप्रश्नादिमें कहते हैं ॥ ८ ॥ वर्षलेखनक्रम, शक मास तिथ्यादि के उपरान्त ग्रहतात्कालस्पष्ट, भावस्पष्ट ग्रहकुंडली, तदनंतर सुन्या कुंडली, नवांश अर्थात् मुशल्लह द्रेष्काण अर्थात् द्रिकाण हद्दा और जन्म कुंडली स्थापन करके, पंचवर्गी द्वादशवर्गी चक्र स्थापन करना, तदनंतर पंचाधिकारी और पोडश योग विचारार्थ स्पष्ट दृष्टिचक्र स्थापन करना, उपरान्त सहम और दशा अन्तर दशाका न्यास होता है, यह सूक्ष्म न्यास है, विशेष वर्पपत्र में बहुत प्रकार चक्र और दशा लिखी जाती हैं,