पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/४७

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भाषाटीकासमेता । ( उपजाति ० ) अपास्यपश्यन्निजदृश्यखेटा देकादिशेषेध्रुवाल - प्तिकाःस्युः।। पूर्णैखवेदास्तिथयोक्षवेदा खंषष्टिरभ्रंशरवेदसंख्या।॥ ११॥ तिथ्यः खचंद्रावियदतर्काः शेषांकयातैष्याविशेषघातात् ॥ लब्धं “खर मैरधिकोन कैष्येस्वर्णध्रुवेताः स्फुटदृष्टिलिप्ताः ॥ १२ ॥ इन दोश्लोकों का युग्म होनेसे अर्थ दोनोंका इकट्ठे लिखते हैं कि, जो ग्रह देखता है वह द्रष्टा और जिसे देखता है वह दृश्य कहता है. दृश्य ग्रह राश्या- दिमें द्रष्टाग्रह राश्यादि स्पष्ट घटाय देना. शेष एक आदिक राशिमें शून्या- दि कलात्मक दृष्टि ध्रुवक होता है. जैसे एक शेष होतो दृष्टि ध्रुवक शून्य हुवा. दो शेष रहनेमें ४० तीन शेष में १५ चारमें ४५ पांचशेष में • छः में ६० सातमें • आंठमें ४५ नौमें १५ दशमें ११ ग्यारहमें ● बारहमें ६० जहां शून्यर है, जैसे ११५/७/११ में है तो दृष्टि साधन प्रकार ऐसा है कि, दोनों १ २३ ४.५६ ८/९/१०/११/१२ ०२/४०/१५४५० ६००४५ १५/१०/० ६० स्पष्टोंके अंतरसे शेष अंशादिका शेषांक नामहै तथा प्राप्त ध्रुवक और ध्रुवकको अंतरयातैष्य विशेषं नामक हैं. शेषांकको यातैष्य विशेषसे गुणना वीससे भागलेना लब्धि, पूर्वोत ध्रुवकोंमें जैसा गत गम्य है. आगेका अधिक होतो धन करना आगेका ध्रुवक पूर्व ध्रुवकसे न्यून हो तो ऋण करना. इस प्रकार दृष्टिकला सिद्ध होती है. ( उदाहरण ) भौमस्पष्ट ४ । १३ । ३७ । ९ शुक्र १ | २४ । ५२ । ४५ इनकी आपसमें चतुर्थ दशम दृष्टि है. यहां द्रष्टा शुक्र और दृश्यमंगल है. भौमस्पष्ट में शुक्रस्पष्ट घटाया शेष २|१८|४४।२४ राशिशेष रही तो २ का ध्रुवक ४० गत ध्रुवक हुवा. एष्य ध्रुवक ३ के नीचेका १५ है. इन्का अंतर २५ शेष अंशादि १८०४४। २४ गुन दिये ४६ ८/३०1० अंशके स्थानमें ३० से भाग दिया लब्धि कलादिफल १५। ३७। ० अग्रिम ध्रुवक अधिक होता तो यह गत ध्रुवकमें जोड़ देनाथा. यहां अग्रिम १५ गत ४० से न्यून होतो ४० में लब्धि घटाच दिया शेष २४।२३।० यह कलादि दृष्टि हुई जब मंगलकी दृष्टि शुक्र परगि-