पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/४८

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(४० ) ताजिकनीलकण्ठी | ननी है तो द्रष्टा मंगल दृश्य शुक्र हुवा पूर्ववत् विधीसे दृष्टि १३।७।२४ होती है ऐसेही सभीका जानना ॥ ११ ॥ १२ ॥ . ( शार्दूल वि० ) – पश्यन्मित्रहशा सुहृद्विपुशा शत्रुः समास्त्वन्यथा तिथ्यकाष्टन गांकशैलखचराः सूर्य्यादिदीप्तांशकाः || चक्रेवामहगु च्यते बलवती मध्याद्यथावेश्मनीत्येकक्षैपिगुच्यतेर्थजननीत्येके विदुःसूरयः ॥ १३ ॥ नवम पंचमकी प्रत्यक्ष दृष्टि जो यह देखता है. वह तत्काल अघि- मित्र होता है. और जो तीसरे ग्यारहवेंमें गुप्त स्नेह दृष्टि देखता है. यह तात्का- लमैं मित्र है, जो ग्रह चतुर्थ दशम में गुप्त शत्रु दृष्टि देखता है वह तात्कालमें शत्रु होता है; और जो १ | ७ स्थानों में प्रत्यक्ष शत्रु दृष्टि देखता है वह अधि शत्रु होता है इनसे उपरांत २|६|८|१२स्थानों में दृष्टि तो गणितसे कियद्भाग- मात्र जैसे कही ०1० भी होजाती है, परंतु तत्कालमें पूर्णभाग दृष्टि न होनेसे वह सम कहाता है यह तात्काल मैत्री हुई और नैसर्गिक मैत्री ताजिकांतरोंसे यह है कि, "मित्राण्यारशशांकशक्रन्सचिवाः सौम्याकंदेवाचिं- ता. जीवा केक्षणदाधिपा शनिसितौ मंदज्ञशुका इमे ॥ सूर्ग्यात्स्यू रिपवन्ध ता- जिकमते शेपा बुधैश्वोदिताः” इति १ इसका अर्थ चक्रसे समझना ये नियत "नैसर्गिकमैत्रीचक्रहै | ग्रहाः सूचं मं बु बृ शु श रा मित्र शत्रु हैं. प्रयोजन कहते हैं कि जो ग्रह नैसर्गिक मैत्री और तत्का- लमेभी मित्र है वह अधिमित्र होता है, जो नैसर्गिकमें शत्रु और तात्काल भी शत्रु है वह अधिशत्रु होता है. वृह जो एक चक्रमें मित्र दूसरेमें शत्रु है वह समकहाता है. परंतु यह मत जातकोंका मुख्य है. मित्रामित्रीका विचार पूर्वोक्त पंचवर्ग्यादिविचारमें काम आता है. लग्नादि द्वादश भाव चक्रमें मित्राणि सं शत्रवः 100 109 559 55 115 ) 5-95 pre 1595 59h F 912 1395. 13929 139595 शशश मं मं में मैं