पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/५१

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भाषाटीकासमेता । (४३) ४ मंदगतिग्रह बहुत अंश होके आगे बैठा हो और शीघ्र गति अल्प अंशपर हो और दृष्टि दोनों की दीप्तांशके भीतर होतो शीघ्रग्रह अपना तेज अग्रगत मंदग्रह को दे देता है इसको मुथशिलयोग कहते हैं. यह योग चार प्रकारका होता है. प्रथम वर्तमान मुथशिल १ परिपूर्ण मुथशिल २ राश्यन्त राश्यादि स्थित शीघ्र मंद ग्रहोंसे वर्त्तमान मुथशिल ३ भविष्यन्मुथशिल ४ शीघ्र और मंदगत स्पष्टसे जाननी, यहां मंदगतिका प्रयोजन नहीं है. तत्काल स्पष्टकी गतिसे शीघ्र वा मंदग्रहं समझना. और मुथशिल नाम इत्थशालका है. यहां प्रथम वर्त्तमान मुथशिल योगका उदाहरण कहते हैं. शीघ्रगतिवाला ग्रह मंद- गतिवालेसे न्यून अंशपर हो, वस्तुतः शीघ्रके दीप्तांश संख्याके भीतरहो, और दोनोंकी परस्पर. 'नवम पंचमादि उक्त दृष्टि होतो इसका नाम वर्त्तमान इत्थ शाल हुआ फल है कि शीघ्र अर्थात् पृष्ठगत ग्रह अपना तेज (सामर्थ्य ) मंद- • गति ग्रहको देदेता है इसका फल पूर्ण मुथशिलसे न्यून होता है. अब पूर्ण मुथशिलयोगका उदा- हरण कहते हैं, वर्त्तमान चं इत्थशाल के तरह दृष्टि १२ और शीघ्र और अल्प अंशा: वर्तमान मुशिल सू २० परिपूर्ण मुथशिल ११ श ४ भाग मंदग्रह बहुत अंश- पर हो परंतु शीघ्र ग्रह मंदग्रहके बराबर, अंशके पर हो केवल कला अथवा विकला मात्र न्यून हो तो इसको पूर्ण इत्यशाल कहते हैं फलभी इसका पूर्ण होता है; ५ में दो प्रकारके हुये ॥ ४ ॥ इंद्रवज्रा - शीघ्रोयदाभांत्यलवेस्थितः सन्मंदेऽन्यभस्थे निदधाति तेजः ॥ स्यादित्थशालोयमथैषशीघ्रदीप्तांशकांशैरिहमंदपृष्ठे ॥ ५॥ तदाभविष्यद्गणनीयमित्थशालं त्रिधैवं थशीलमाहुः || लग्नेश कार्य्याधिपयोर्यथैष योगस्तथा कार्यमुशंति संतः ॥ ६॥ शीघ्र ग्रह २९ अंश राश्यतमें हो अर्थात् जिस राशिसे मंदर पूर्ण