पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/५२

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(४४.) ताजिकनीलकण्ठी । दृष्टि होती है उसमें जाता हो और मंदग्रह स्वल्प अंशपर हो जैसे मंगल २९ अंश धनस्थानमें है. तीसरे स्थानमें जाना चाहता है. दूसरा मंदग्रह शनि ग्यारहवें भाव में ४ अंशपरहै यहभी वर्त्तमान मुथशिल योगहै. राश्यंत राश्या- दिस्थ वर्त्तमान, इसे कहते हैं अर्थात् मंगल तीसरे भावमें जानेको तैयार हैं वहां पहुँच कर शनिसे इत्थसालकरने वालाहै ३ चौथा शीघ्रग्रह मदग्रहसे न्यून अंशपर और पूर्ण दृष्टि परस्परहो परंतु शीघ्र ग्रहके, उक्त दीप्तांशों' के अंतर्गत मंद न हो। किंतु शीघ्र स्वदीमांशों में राश्यां- तराज्यादिस्थ वर्तमानमु शिल बु १२ २० अंतर मंदग्रह को लेना चाहता हो, जैसे तीसरे भाव में बुध १२ अंशपर और ग्यारहवेंमें बृहस्पति २० अंशपरहै तो बुधके दीप्तांश ७ से अधिक परहै 'परंतु बुध बृहस्पतिका स्वदीप्तांशांतर्गत करना चाहता है. इसको भविष्य -मुथशिल योग कहते हैं ये ४ चार उदाहरण हैं. प्रकार तो मुख्यतः तीनहीं हैं वर्त्तमान, पूर्ण, और भविष्य, परंतु वर्त्तमानके २ प्रकार होनेंसे यहां उदाहरणमें चार भेद करदिये और मुथशिल मुत्थशिल मुत्थशील मूथशील ये चारप्रकारचे नाम एक इत्थशाल केहीहैं. अब इनके फल कहते हैं कि जिस भाव संबंधी काहै उसके स्वामी और लग्नेशका इत्यशाल होनेमें उसकार्य की सिद्धि होती है. कार्घ्य भाइयोंके निमित्त तृतीयेश संतानार्थ पंचमेश राज्यार्थ. दशमेश और जायार्थ सप्तमेश इत्यादि पू- वक्त भाव कर्मोंसें कार्येश जानना जैसे संतान प्रश्नमें लग्नेश पंचमेशका इत्यशाल योग और स्त्री प्रश्नमें लंग्नेश सप्तमेशका, एवं राज्यप्रश्नमें लग्नेश दश- मेशका योग विचारना और इन ४ प्रकार के इत्थशालोंमें यह विचारमी मुख्य चाहिये कि ३ । ११ और ५२९ भाव संबंधी इत्थशाल तद्भावजन्य शुभफल करतेहैं; क्योंकि ये मित्र दृष्टिहैं और ११७तथा ४ | १० इन भाव संबंधी इत्यशाल तद्भावोक्त फलको अनिष्ट कर देते हैं. अर्थात् तद्भावोत्थ- C विष्यन्मुथाशिल