पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/५३

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भाषाटीकासमेता | (४५) कार्य्यको नाश करदेते हैं. यह शत्रुष्टिका प्रभाव है यहफलका शुभाशुभ, पूर्वदृष्टि विचार दशवें श्लोक में कहा है, इत्थशाल कर्त्ता लग्नेश काव्यशक अंशोंका अंतर करके जो शेष रहे उसे बारह १२ से गुनदेना, इतने दिनों में उस इत्थशालका फल होगा ऐसे सर्वत्र जानना ॥ ५ ॥ ६ ॥ ( उपजा० ) लग्नेशकार्य्याधिपतत्सहायायत्रस्युरस्मिन्पतिसौ म्यदृष्टे ॥ तदाबलाढ्यैकथयंतियोगं विशेषतः स्त्रेहदृशापिसंतः ॥७॥ लग्नेश और कार्येशके मित्र ग्रहभी उन्हींके सदृश फलदेते हैं परंतु, लग्ने- शादियुक्त ग्रह जिस भाव में हैं वह अपने स्वामी और शुभग्रहोंसे दृष्ट हों तो पूर्वोक्त योग बलवान होताहै उक्तग्रह इत्थशालके फलोंको ( उत्कृष्ट ) विशेष करदेते हैं, पण्डित लोग खेहदृष्टि से फलकी विशेषता कहते हैं, इत्थशाल हुये में इतना विचार और भी चाहिये कि इत्थशाली मन्दग्रह वक हो तो उक्त- फल अधिक होगा, यह विचार युक्तिसिद्ध है ॥ ७ ॥ स्त्रीमातिप्रश्. •सी भने. ५ 19 वर्तमान नुयशल 13 १२ केवलार्थप्र. 'भावेष्य' ७ ४२५ ११.८ मुथाश) 'नं१२ '१४ ल ६ मं e परिपूर्ण मुथाश' १० ल ११ १२ धनलाभप्रश्ने. ३ 'राश्यांत 1 राझ्यादि १ शु.१ स्थितव, 1 ( उपजाति ० ) स्वक्षदिसत्स्थानगतः शुभैश्चेद्युतेक्षितोभूद्भविताऽथवास्ते ॥ ता शुभंप्रागभवत्सुपूर्णमये भविष्यत्यथवर्त्त- तेच ॥ ८ ॥ इत्थशाल योग कर्ता लग्नेश और कार्य्याधीश वा दोनहूं गृह उच्च वा मित्र राशि, वा स्वहद्दा, स्वत्रिंशांश, स्वमुशहादिं सत्स्थान में प्राप्तहो, और शुभ-