पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/५४

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(४६) ताजिकनीलकण्ठी | ग्रहों से युक्त वा दृष्ट हो तो, इत्थशालोक्त शुभफल तत्कालही होगा. जो स्वरा - -श्यादि शुभस्थान में प्राप्त होनेवाला हो और शुभग्रह युक्त वा दृष्ट होनेवाला हो तो, उक्तफल पीछे होगा, यदि स्वर्शादि शुभ स्थानसे दूसरे स्थानमें प्राप्त हुये, थोडाही कालबीता हो तो पूर्वोक्त फल होगयाहै, कहना. ये विचार वर्ष और प्रश्नादियों में सर्वत्र बुद्धिबलसे करना, ॥ ८ ॥ ( उपजा० ) व्यत्यस्तमस्माद्विपरीत भावेस्वेष्टर्क्षतोनिष्टगृहं प्रपन्नः ॥ अभूच्छुभं प्रागशुमंत्विदानीं संया तुकामेनचभाविवाच्यम् ॥ ९ ॥ पूर्वश्लोकमें जो स्वर्शादिस्थ इत्यशाली ग्रहोंसे भूत भविष्य वर्त्तमान का- लिक शुभफल कहेहें तैसेही शत्रुराश्यादि अनिष्टस्थान और पापग्रह योग - दृष्टि से अशुभ फलमी होता है, जैसे लग्नेश कार्येश वा दोनहूँ शत्रु वा नीच राशिमें वा शत्रुके हद्दा, मुशङहादि दुष्ट स्थानों में हों, और पापग्रहों से युक्त वा दृष्ट हों तो इत्थशालोक्त अनिष्ट फलंतत्कालही होगा, आगे पीछे शुभहोगा जो ऐसाही स्वोच्चादिराशिगत पापयुक्त दृष्ट होकर वर्त्तमान राशिमें आया हो तो उक्तफल भी पूर्वही देदेवेगा, पीछे शुभ फल देगा, जो स्वोच्चादि राशि प्राप्त और पापयुक्त दृष्ट होनेवाला हो तो उक्तफल भी आगे होगा इन योगोंमें अनिष्ट फलकी प्राप्ति होनेमें शुभाशुभ दोनों यथोक्तकालपर दोनहूं होते हैं, शुभफलकी शाप्ति में सर्वदा शुभही होता है, उदाहरणके वास्ते तीसरे मुशि - लका रूप कहते हैं कि चन्द्रमा राश्यंत २९ अंशपर है और सूर्य राश्यादि १० अंशपर है. चन्द्रमाके दीप्तांश १२ के भीतर होनेसे इत्थशाल हुवा, अब इसमें यह विचारना चाहिये कि चन्द्रमा वर्तमान कुम्भराशिमें होनेसे शत्रुराशि गत है, आगे १२ राशि मित्रराशिमें जाता है तो प्रथम अशुभ फल पीछे शुभफलं होगा, इसी प्रकार सर्वत्र गतागत वर्त्तमान कालिक फल कहना ॥ ९ ॥ ( ई० व० ) शीघ्रो यदा मंदगतेरथैकमप्यंशमभ्येतितदेशराफः ।। कार्यक्षयोमूशरिफेखलोत्थेसौम्येन हिल्लाजमतेनचित्यम् ॥ १० ॥ पूर्वोक्त इत्थशाल योगका विपरीत ईसराफ योग कहते हैं कि शीघ्रगति