पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/५५

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

भाषाटीकासमेता । ' (४७) ग्रह जो मंदगति ग्रहके एक अंश भी आगे बढ जाय तो ईसराफ योग होता है. इसको मूशरिफ भी कहते हैं. यह कार्ग्यका नाश अर्थात इत्थशाल होनेमें जो कार्म्यसिद्धि होनीथी उसको विपरीत करदेता है. इसमें हिल्लाजमतसे इतना विचार है कि यह मूशरिफ पापग्रहाका हो तो कार्य्य विपरीत अर्थात् शुभके बदले अशुभ करेगा. जो उक्त योग शुभ- ग्रहों से हो तो कार्यको विपरीत तो नहीं करेगा, किंतु शुभफल जो १० ८ वृ९ यशालसे होनाथा उसे न होने देगा उदाहरण ९ लग्नमें बृहस्पति १६ अंश लग्नमें व सप्तमेश बुध मि- थुनमें १७ अंश पर है तो मंदगति बृहस्पतिसे शीघ्र गति बुध एक अंश अधिक बढगया, इसका नाम ईसराफ वा मुशरीफ हुआ, स्त्रीप्राप्ति कार्य था यह सिद्ध नहीं होगा. यह दोनों पापग्रह होते तो स्त्री प्राप्तिके बदले स्त्री संबन्धी कर्मसे अनिष्टहोता, ऐ- साही सर्वत्र जानना ॥ १० ॥ २ ४ 1 उपजा० - लग्नेशकार्य्याधिपयोर्नदृष्टिर्मिथोऽथतन्मध्यगतोपिशीघ्रः || आदाय तेजोयदिपृष्ठसंस्थान्यसेदान्ये यदि न मेितत् ॥ ११ ॥ लग्नेश और कार्य्याधीशकी परस्पर दृष्टि न हो किंतु इन दोनों के बीच किसी भावमें उन दोनोंसे शीघ्र ग्रह लग्नेश और कार्येशको भी देखता हो तो अपने पीछेवाले स्वल्पांश ग्रहको तेज लेकर आगेवाले बृहदंशको देदे - . चाहै, परंतु यह शीघ्रगति अल्पांश ग्रहसे अधिक और मंदगति, बृहदंश ग्रहसे न्यून अंशपर होवे, यह योग अन्यद्वारा कार्य्यसिद्धि करता है, इस कानाम नक्तयोग है, उदाहरण आगे कहतेहैं ॥ ११ ॥ ( उपजा० ) - लाभ च्छातनुरस्तिकन्या स्वार्म धःसिंहगतो दशशैः॥ सूर्य्याशकैर्देवगुरुः कलत्रेदृष्टिस्तयोर्नास्तिमिथोथचंद्रः ॥ १२॥ चापेवृषेचोभयदृश्यमूर्तिः शीघ्रोर्कमा गैरथवाभवांशैः ॥ आदायतेजो बुधतोददौयज्जीवायलाभः परतः स्त्रियाःस्यात् ॥ १३ ॥ १२ बु३ I ६