पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/५७

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भाषाटी मेता । (४९ ) मंदग्रह को देदेता है. इस योगका नाम यमया है. कार्य्यकी सिद्धि दूसरेके द्वारा करता है ॥ १४ ॥ इं०व० - राज्याप्तिपृच्छातुललग्ननाथोमेषेसितस्त्वष्टलवैर्वृषस्थः ॥ चंद्रोदशांशैर्यदिराज्यनाथोदृष्टिस्तयोनास्ति रुस्तुमंदः ॥ १५ ॥ उ० वं० - दिगंशगः कर्कगतस्तुपश्यन्नुभौमहोदीप्तलवैः सचांद्रम् ॥ ददौसितायेतिपदस्यलाभोमात्येन भावीतिविमृश्यवाच्यम् ॥१६॥ यमया योगका उदाहरण, जैसे राज्यप्राप्ति प्रश्नमें तुलालग्नका स्वामी शुक्र सप्तम भावमें मेषके ९ ८ अंशपर और कार्य्य दशम स्थान सम्बन्धी होनेसे दशमेश चन्द्रमा वृषके १० अंशपर अष्टम स्थानमें है, इन लग्नेश कार्य्येशोंकी परस्पर नहीं है, दीप्तांशोंके अन्तर्गत हैं. योग होनेमें ६ ० दृष्टि ११ १०यमया४वृ. १० शु ८ १२ २चं१० केवल दृष्टिकी न्यूनता रही यह कार्य्य, तीसरा यह अर्थात् बृहस्पति सम्पा- दन कर्त्ता है कि, यह स्थान दृष्टि १० | ११ स्थानमें, शु० चंद्र० दोन हूँको देखता है तो शीघ्र चन्द्रमासे तेज़ लेकर, उससे मन्द शुक्रको देता है इस योगका नाम यमया है. फल यह है कि, लग्नेश कार्य्येका इत्यशाल होता तो आपही राज्यप्राप्ति होनीथी, यहां बृहस्पतिसे योग पूर्ण हुआ तो दूसरेके द्वारा राज्यप्राप्ति होगी, बृहस्पति देवगुरु या देवमन्त्री है इससे फल ( राज्यप्राप्ति ) पुरोहित वा अमात्यके द्वारा होगी ऐसे सभी संब- थी फल अपनी बुद्धिसे विचारके कहना, यहां राज्यप्राप्ति प्रश्न केवल उपल- क्षण मात्र है ॥ १५ ॥ १६ ॥ ( इन्द्रवज्रा ) वक्र: शनिर्वा यदि शीघ्रखेटात्पश्चात्पुरस्तिष्ठति तुर्य्यदृष्ट्या ॥ एकर्क्षस क्षभुवाहशावा पश्यंस्तथंशिर धिकोनकै- चेत् ।।. १७ ।। (उपजाति) (पूर्वार्द्ध) तेजोहरेत्कार्य्यपदेत्थशा- स्थितोपिवासौमणउःशुभो न ॥ मणऊ योगका लक्षण कहते हैं, यह नक्तयोगके तरह है परन्तु शनि वा मंगलकी ऐसी प्राप्तिमें फल विपरीत होजाता है, इसकारण यह मंणऊ नाम ४