पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/५८

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(५०) ताजिकनीलकण्ठी । योग पृथक् है, मणउ पारशीय ( मनै) पदका पर्याय है. प्रयोजन है कि, का करनेमें (मनै ) अर्थात् विघ्न करदेता है. लक्षण यह कि, लग्नेश और इत्यशाली अर्थात् शीघ्रोल्पभाग मन्द घन भाग और परस्पर दृष्टियुक्तहों, परंतु इनके बीच मंगल वा शनि शीघ्रगति ग्रहके समीप उसके दीप्तांशोंके भीतर आगे वा पीछे हो और चतुर्थ सतम वा एकक्ष दृष्टि से उसे देखे मन्दग्रहकोभी किसी दृष्टि से देखे और इसके दीप्तांशोंके अन्तर वह मन्दग्रह होवे जो कि लग्नेश वा कार्येश है, तो शीघ्र ग्रहका तेज हरलेता है. मन्दग्रहको वह तेज नहीं देता यह मंगल शनिकी प्रकृति और शत्रुदृष्टिका फल है, इसको मणउ योग कहतेहैं इत्थशालका विरुद्धफल अर्थात् कार्य्यनाश कर्त्ता है ॥ १७ ॥ पजा० - स्त्रीलाभपृच्छातनुरस्तिकन्यात्रज्ञोदिगंशैस्तिथिभिः सुरेज्यः ॥ १८ ॥ कलत्रगःखे व निजो भवशैः पूर्णबुधो भौमद्ध- तस्वतेजाः ॥ जीवेनपश्चान्मिलतीतिलाभोनार्थ्यास्तुनो पृष्ठ- गतेथवास्मिन् ॥ १९ ॥ मणउं मणउं ५ १० १० ४ १२१५२ १५, माउं ५ ७ ज्ञ१५ ४ १० ३ २चम १३ मणउं योगका उदाहरण स्त्रीलाभ प्रश्नमें कन्या लग्न लग्नेश बुध लग्नके दश अंशपर स्त्रीलाभ कार्य होनेसे सप्तमेश सप्तम बृहस्पति मीनके १५ अंशमें हैं, इनका इत्थशाल स्त्रीलाभकारी था, परन्तु मंगल मणउं अर्थात् मनै कर- ता है कि यह दशम स्थानमें मिथुनके ग्यारह अंशपर स्थित होकर लग्नेश बुधको तुर्य्यदृष्टि अर्थात् शत्रुदृष्टि से देखता है, और बुधके अंश समीपवर्त्ती है इस हेतु बुधका तेज मंगलने हरणं किया, बुध निस्तेज होगया, अर्थात् फल देनेको सामर्थ्य इसको न रहा, मंगलने हानि अर्थात् मणउं मनै करली