पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/५९

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भाषाटीकासमेता । (५१ ) 77 है; लग्नेश कार्येश चु० बृ० के इत्थशालसे स्त्रीप्राप्ति होनीथी, मंगलके मणउं करनेसे यह कार्ग्य नहीं होगा, प्रत्यक्षतः स्त्रीसम्बन्धी हानि होगी ऐसे ही शनिसेभी मणउं योग होता है, दूसरा उदाहरण मीनलग्न मन्द लग्नेश बृह- स्पति ८ अंश सप्तमेश बुध ८ अंश सप्तम स्थानमें शनि मीनके ९ अंशपर यह एक अंश अधिक होनेपरभी मणउं योग हुवा. तीसरा उदाहरण, लाभ अश्नमें कर्क लग्नसे लग्नेश चंद्रमा वृषके दश अंशपर लाभेश शुक्रलग्नमें कर्कके ११ अंशपर इनके इत्थशाल होनेसे धनलाभ होना था, परन्तु वृषके १६ अंश पर चन्द्रमाके साथ एक भावगत शत्रुदृष्टि देखनेवाला मंगल वा शनि होनेसे मणउं योग होगया, शीघ्र चन्द्रमाके तेज मंगलने शुक्रको न देने दिया, आप- ही नाश करदिया. फल इत्थशाल होनाथा नहीं होगा प्रत्युत हानि होगी, यहां इस योगके मूल वाक्यमें, “अंशैरधिकोनकैश्चेत् ” अर्थात् मणउं करने चाला ग्रह शीघ्रसे पीछे वा आगे अंशों में समीपहो कहा है युक्तिसे यह भी विचार चाहिये कि, जो शीघ्र ग्रहसे आगे हो तो इससे भी आगे कार्येश । जो ग्रह है वह मणउं करनेवाले ग्रहसे मन्दगति हो क्योंकि यह उसको अपनी गतिसे आक्रमण करसके तो मणउं योग होगा जब मणउं करनेवालेसे आगेका लग्नेश शीघ्रसे मन्दग्रह मणउंवालेसे शीघ्र हो तो मणउं करनेवाले से, क्योंकि इसमें उसको आक्रमण नहीं कत्ती है दूसरा जब शीघ्र ग्रहसे पीछे मगउं करनेवाला मंगल वा शनि होतो यह इतना शीघ्रगति होना चाहिये कि कार्येश वा लग्नेश पूर्वोक्त शीघ्रगति ग्रहको आक्रमण करके आगेवाले योग कारक मन्द ग्रहको पहुँचसके तो मणउं ठीक होगा. जब इसकी इतनीशीघ्र गति नहीं है कि पीछेवाले शीघ्र ग्रहोंको उल्लंघनकर आगेवाले मन्दगति तीसरे ग्रहको न पहुँचसके तो माँउ योग नहीं होगा, लग्नेश कार्येशका पूर्वोत इत्थशालही रह जायगा ऐसे विचार औरभी स्वबुद्धिसे चाहिये. यहां शनि और मंगलके मणउं योग तीन तीन प्रकारके होनेसे छः भेद हुये, उपरान्त शीघ्र ग्रहके पीछे और आगे मणउँवाला ग्रह होनेसे बारह भेद हैं, शेष बुद्धि से विचारना, भाषा बहुत बढ़ जाने के कारण मैंने सूक्ष्मही लिखा है ॥ १८॥ १९ ॥