पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/६०

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(५२). उपजा ० - भूसुतौचेत् ॥ एकर्क्षगौलंग्न निरुतौ ॥ २० ॥ पकार्य्यपौस्तस्तेजोहरौकायहरौ 1 ६ नक्तयोगका भेद औरभी है कि, जब लग्नेश कार्येशका पूर्वोक्त प्रकारसे इत्यशालहो और इनके दीप्तांशोंके भीतर आगे वा पीछे शनि मंगल दोनहूं वा एक ग्रह उन दोनोंके समीप-दीप्तांश भीतर आगे वा पीछे हो अथवा लग्नेश कार्येश में एक के साथ शनि वा मंगल उसके दीप्तांश भीतर आगे वा. पीछे हो तो यहभी मणउं योग कार्य्यनाश करनेवाला होता है. ॥ २० ॥ उपजा० - राज्याप्तिपृच्छातुललग्ननाथः कर्केसितोंशस्तिथिभि दिगंशैः ॥ वृषेशशीभूपलवैःकुजश्चहरेद्दयोभहरतेचराज्यम् ॥२१॥ - इस मणउं योगका उदाहरण राज्यप्राप्ति प्रश्नमें तुला | . लग्न लग्नेश शुक्र दशम कर्कके पंद्रह अंशपर राज्येश चंद्र- मा अष्टम वृषके दशअंशपर उच्चवर्ती तथा मंगलभी अष्टम- वृषके १६ अंशपर है और शनिभी अष्टम वृषके दश अंशपर है मंगल शनिमें से एकके होनेसेभी योग होजाता है, यहां उपलक्षणार्थ दोनहूं लिखे हैं. प्रयोजन यह है कि, लवेश कार्येशमें से एकके भी दीप्तांश भीतर आगे वा पीछे भौम शनिमें से एकभी होनेसे योग सम्पन्न होता है, यहां लगेश कार्येशके शुक्र चंद्रके इत्थशालमें राज्यप्राप्ति होनी थी मंगल शनि कार्येशके साथ उसके दीप्तांशोंके समीप होनेसे इन्होंने उसका तेज नाश करदिया इसका नामभी मणउं योग है, राज्यप्राप्ति नहीं होने देगा प्रत्युत राज्यहानि करेगा, यहभी मणउंका भेद है ॥ २१ ॥ अनुष्टुप् - लग्नकाय्यैशयोरित्थशालेजेंद्वित्थशालतः ।। कंबूलं श्रेष्टमध्यादिभेदैर्नानाविधंस्मृतम् ॥ २२ ॥ ११ १२ • लगेश कार्येशका पूर्वोक्त प्रकारसे. इत्यशालहो, और चन्द्रमा लग्नेश कार्येश वा दोनोंके साथ इत्थशाली रहे तो इसका नाम कंबूल योग ताजिकनीलकण्ठी | यदीत्थशालोस्त्युभयोःस्वदीतहीनाधिकांशैः शनि C ७ १० १५