पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/६१

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भाषाटीकासमेता । (५३) होता है, कंबूल पारशीय पद कबूलका पर्याय है इसके श्रेष्ठ मध्य अव भेदोंसे अनेक प्रकार हैं. उच्च स्वगृहसे उत्तमाधिकार स्वहद्दा द्रेष्काण नवां- शकसे दूसरा मध्यम अधिकार शत्रु नीचगृहावस्थितिसे तीसरा अधमा- धिकार जहां इन तीनोंमेंसे एकभी अधिकारी न हो तो यह चौथा समा- धिकार है, इससेभी चन्द्रमा उत्तमाधिकारी हो और लग्नेश कार्येश से कोई प्रत्येक भेद करके चार अधिकारोंमें होनेसे चारभेद; ऐसे ही चन्द्रमा मध्यमा- धिकारी और अधम तथा समाधिकारी होनेमें उनके प्रत्येक अधिकारों करके ४ । ४ भेद होतेहैं. समस्त सोलह १६ भेद हुये, पुनः १६ भेद लग्नेशके १६ कार्येशके होनेसे संपूर्ण ३२ बत्तीस भेद होते हैं, इनके नाम उत्तमोत्तम १ उत्तम मध्यम २ उत्तम सम ३ उत्तमाधम ४ मध्यमो- त्तम १५ मध्यम मध्यम ६ मध्यमाधम ७ मध्यम सम ८ समोत्तम ९ मध्यम १० सम सम १३ समाधम १२ अधमोत्तम १३ अधममध्यम १४ अधम सम १५ अधमाधम १६ ये सोलहविकल्पोंके नाम हैं, लग्नेश कार्ये- शके प्रत्येक करके ३२ बत्तीस होते हैं, उनमें उत्तम सम और समोत्तम ये दोनों मध्यमहीके हैं. ४।४भेद सभीके होते तो ३२ सभी अधिक विकल्प होने थे किंतु यहां लगेश कार्येशकी उच्चादिकल्पना आवश्यक नहीं है, इत्थ - - शालमात्र चाहिये, केवल चन्द्रमाके उच्चादिभेद आवश्यक होनेसे यहां १६ ही भेद होतेहैं लग्नेश कार्य्यशके पृथक् गणनासे ३२ बत्तीस होते हैं ॥ २२ ॥ अनु० – यदीन्दः स्वगृहोच्चस्थस्ताहशील कार्य्यौ । इत्थशालीकवूलंतदुत्तमोत्तम च्यते ॥ २३ ॥ चन्द्रमा स्वराशि४ में अथवा अपने उच्च राशि २ में ऐसे ही स्वराशि वा स्वोच्चराशिगत लग्नेश और कार्येशभी हो लग्नेश कार्येशका इत्थशाल हो चन्द्रमा दोनों के इत्थशाली हो तो इसका नाम उत्तमोत्तम कंबूल होता है . २ यहां ग्रंथकर्त्ताने केवल उत्तमोत्तम उत्तमाधम दोनों आयन्तवालोंके उदा- १२ मसू१ ११ २१७२०/ १० चं१४, ७ ८