पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/६२

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(५४ ) ताजिकनीलकण्ठी | हरण कहे हैं. पूरेग्रन्थ बढजानेके भयसे न लिखे, अपनी बुद्धि से समझलेना कहा है इस भाषामें और ग्रन्थ से ग्रंथकर्त्ताका अभिप्राय पुष्ट करनेको मैं उदाहरण लिखताहूं कि, "मेपेरविः कुजेवापि वृपेकर्केथवाशशी ॥ तत्रेत्थशाला - कंबूलमुत्तमोत्तमकार्य्यकृत् ॥ १ ॥” अर्थ -संतती होगी वा नहीं ऐसे प्रश्नमें मेप लग्न लग्नेशमें २० अंशपर संतानप्रश्न होनेसे पंचमेश आवश्यक है सोही पंचमेश सूर्य लग्नमें मेपके १७ अंशपर होनेसे एकराशिस्थ दृष्टि और दीमांशा- भ्यंतर होनेसे इत्थशाल हुआ. अब कम्बूल करनेवाला चन्द्रमा स्वगृही चतुर्थ स्थानमें कर्क १४ अंशपरहै लग्नेश कार्येश मं० शु० दोनहूंके साथ इत्थ - शाल करता है, यह उत्तमोत्तम कंबूल हुवा, कार्यभी उत्तमोत्तम करेगा. उत्तमोत्तम कंबूलर ११ मं१५ उ० त० कंबूल ३ १२ १मं? २८ ११ उ० त० कंबूल ४ १२ सू२२ १० इस विषय के उदाहरण तीन कुंडलियोंमें औरभी लिखेहें और लग्नेश कार्येशमेंसे एक ग्रहके साथभी चन्द्रमा मुथशिल करे तो यहभी कंबूल होता है ||२३|| अनु० - स्वीयहछ। द्रिकाणांकभागस्थेनेत्थशालतः || मध्यमोत्तमकबूलंहीनाधिकृतिनोत्तमम् ॥ २४ ॥ लग्नेश कार्येश अपने हद्दा स्वद्रेष्काण वा स्वनवांशकमें परस्पर मुथशिल कारी हो, और चंद्रमा स्वराशि वा उच्चराशिमें बैठकर उनके साथ इत्यशाल करे तो उत्तम मध्यम संज्ञक कंबूलयोग होता है. यहां ग्रंथकर्त्ताने श्लोक में छन्दोभंगके भयसे मध्यमोत्तम लिखा है. संज्ञा इसकी उत्तम मध्यम है. इसका उदाहरण भाग्यवृद्धिमें तुलालग्न लग्नेश शुक्र दशम स्थान में कर्कका