पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/६३

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भाषाटीकासमेता । १२ २ अपनी हद्दामें और भाग्यभावाधीश बुध सप्तमस्था नमें अपने हद्दा में १४ अंशपर है इनकापरस्पर मुथ शिलयोगहै अब कंबूली चन्द्रमा स्वराशिगत कर्कके८ अंशमें लगेश कार्येश दोनहूंके साथ मुथशिल करता ११ है, योगपूर्णहुवा. यह लग्नेश कार्येशके स्वहद्दामें और चन्द्रमाके स्वोच्च वा स्वराशिगत होनेसे उत्तम मध्यम कंबूलहुआ. ऐसे लग्नेश कार्येशके स्वद्रेष्काण वा स्वनवांशगत और चन्द्रमा स्वोच्च वा स्वराशिगत होनेमें उत्तम मध्यम कंबूल होते हैं, जब लग्नेश कार्येश समगृहेश हद्दा - काण नवांश में स्थित होकर परस्पर मुथारील करे और चन्द्रमा स्वगृह वा स्वोच्चगत होकर मुथशिली हो तो उत्तम सम कंबूल होता है, इसका उदाहरण राज्यप्राप्तिप्रश्नमें मिथुनलग्न लग्नेश बुध समग्रह मंगलकी राशिट में और राज्यभावेश बृहस्पति समगृह बुधके ६ राशिहै, कंबूली चन्द्रमा अपने उत्तम सम कंबूल चं२ उच्चराशि वृष में है स्वराशि कर्क में होनेसेभी यही । होता है यहां अंशकन्यांश दीप्तांशोंके अंतर मुथशिल योग होनेके योग्य चाहिये. यह उत्तम सम कंबूल हुआ, राज्यप्राप्ति उत्तम होगी ॥ २४ ॥ (५५) उत्तममध्यम कंबूल १ ६ ६वृ ७ शुट १२ १० अनुष्टु० - उत्त धमतानीचारपुगेहस्थितेनचेत् || स्वद्रेष्काणांशगश्चंद्रः स्वभोच्चस्थेत्थशालकृत् ॥ २५ ॥ C नीचराशि वा शत्रुराशिमें लग्नेश वा कार्येश परस्पर मुथशिली हों और चन्द्रमा अपने उच्च वा अपनी राशिमें बैठा दोनहूँके साथ इत्थशाल करे तो उत्तमाघम कंबूल होता है, यह योग चन्द्रमाके उत्तमाधिकारी और लग्नेश काशके निकृष्टाधिकारी होनेसे है, उदाहरण स्त्रीमाप्तिप्रश्न में तुलालन . लग्नेश शुक्र कन्याके १० अंशपर नीच राशिगत और सतमेश मंगल नीच