पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/६७

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भाषाटीकासमेता । (५९) लग्नेश और कार्येश पादोन होकर परस्पर इत्थशाली हों और चन्द्रमाभी पदोनहोकर लग्नेश और कार्येश के साथ इत्यशाली हो तो समसमाख्य मध्यम कंबूल प्रतीत होताहै "उदाहरण" धनलाभ स समसमाख्य मध्यम कं० और प्रश्न मेषलग्न लग्नेश मंगल सिंहके दश अंशपर धनाधीशशुक्र कुंभके दशअंशपर चन्द्रमा तुलाके दश अंशपर तीनहूं द्रेष्काणोंके मं१० प्रचं१ संधियों में पूर्वोक्त दूसरा प्रकार सूक्ष्म पदो- ४ ह . पूर्ववत् पदोन चंद्रमा उनसे इत्थशाली होतो समसमाख्य कंबूल होता है. उदाहरण, पुत्र प्रक्ष में मिथुनलग्न लग्नेश बुध नीचका मीनमें पुत्रभावेश शुक्र नीचका न्यामें चं द्रमा बृहस्पतिके द्रेष्काणमें है, यहांभी अंश कल्पना इत्थशालयोग चाहिये. यह तीनोंके परस्पर मुथशिल होनेसे समाधम कंबूल हुआ फल संतान प्राप्ति अल्पयत्नसे होंगी ॥२९॥ C नता हुई इन तीनहूंका परस्पर मुथशिल है, यह समसमाख्य मध्यम कंबूल हुआ फल धनलाभ मध्यम अर्थात् न बहुत अधिक न अत्यंत अल्पहोगा अथवा वही लग्नलग्नेश भौम सम और सूक्ष्म २६ अंशपर धनेश शुक्रसम शनि हद्दामें २६ अंशमें और चंद्रमा सम बृहस्पतिके द्रेष्काण में २० समासमाख्य कंबल अंश परहै ये तीस्पर मुथशिली हैं यह भी प्रका- रांतरसे समसमाख्य मध्यम कंबूल है. फलभी पूर्वोक- ही होगा. यह श्लोक पूर्वार्द्धका है अबउत्तरार्धसे १२ हृ ! मं१० चं७ ८ D समाधम कंबूलका लक्षण कहते हैं कि लग्नेश वा ६ ६ १० कार्येश नीचराशि वा शत्रु रोशिमें होकर पस्पर मुथशिली हों, और D d). 201 W 0 ORJ १२ ५ no /90 २३११ Au १० १० ८११६ समसमाख्य मंध्य ० धमाख्य कंबूल