पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/६८

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(६०) ताजिकनीलकण्ठी । अनुष्टु० --नीचशत्रुभगश्चंद्रः स्वभोच्चस्थेत्थशालकृत् || अधमोत्तमकंबूलंस्वहद्दादिगतेनचेत् ॥ ३० ॥ अघमोत्तम क० चंद्रमा नीच राशि वा शत्रु राशिमें हो. और लग्नेश वा कार्येश अपनी -राशि वा अपने उच्च राशिमें दोनहूं वा एक भी हो तो चंद्रमाके अधम और लग्नेश कायँशके उत्तमाधिकार होनेसे यह अधमोत्तम कंबूल योग होता है. . इसका फल पूर्वोक अधमोत्तम कंबूलके सदृश जानना उदाहरण; सुख प्राप्ति प्रश्नमें सिंह लग्न लग्नेश सूर्घ्य अपने उच्चमषेका और चंद्रमा अपने नीच वृद्धि कका है. यहां अंश इत्थशाल योग्य रखने चाहिये जिनसे परस्पर तीनहूंका मुथशिल होजाय. फल इसका सुख थोड़ा प्रयत्नसे ४ ८चं चं ३ मं१० १२ प्राप्त होगा. यह श्लोकके तीन चरणोंका अर्थ हुआ. अब चौथे चरण और दूसरे श्लोक पूर्वार्द्धके अर्थसे अधममध्यम कंबूल इसप्रकारका है कि जब चंद्रमा नीच वा शत्रु राशिमें हो और लग्नेश वा कार्येश वा दोऊ अपने हद्दा द्रेष्काण नवांशकमेंसे किसीमें हों परस्पर तीनहूं इत्थशाली हो जो -चंद्रमाके निकष्टाधिकार और लग्नेश कार्येशके मध्यमाधिकारी होनेसे यह मध्यममध्य कंबूल होता है. पुत्रप्राप्ति प्रश्न में कन्यालग्न लग्नेश बुध मक रके तीन अंशपर अपनी हद्दामें पुत्रभावेश शनि मीनके ५ अंश अपने द्रेष्काणमें ' और चंद्रमा वृश्चिकके तीन अंशपर है. (1 77 मध्यममध्य कं० उदाहरण ५ ११ 19 श १२. ५ ११ इनका परस्पर मुथशिल है यह अधममध्यम कंबूल हुवा. फल इसको संत तिप्राप्ति अति कष्टसे होगी. इसीमें अधमसम कंबूली है कि चंद्रमा नीच •वा शत्रु राशिमें हो और लग्नेश कार्येश दोनहूं वा एक पदोन हो ( पदोनका •अर्थ पूर्वोक्त जानना ) तो अथमसम कंबूल होता है. उदाहरण, राज्यप्राप्ति