पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/७

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भूमिका । (७) बोधक जातकोत्तम बृहज्जातककी भाषाटीका सर्वसाधारणमें थोडा कुछ ज्यो- तिषका मार्ग जिन्होंने देखा है और बड़े ग्रंथ संहितादिकोंमें, गति नहीं है ऐसे. बालकोंके सुगम बोध निमित्त और गुरुजनोंके पाठन में अल्प अमके निमित्त • मैंने करी. उपरान्त इच्छा हुई कि, जातकके फल स्थलकालीन और बहुश्रमी हैं अर्थात् प्रथम सर्वग्रहोंके पड्डल दृष्टि बलेष्ट कष्टबल निसर्गादि बल गणितसे दशांतर्दशा मिलती है इसमें सिद्धांत मतसे सूक्ष्म विचार किया तो बहुश्रमसे स्थूलकाल फल मिलता है जैसे माहेश्वरी दशा में शुक्रके २० वर्ष निसर्ग दशामें शनिके५० वर्ष और उच्चादिबल पूर्ण होने में चन्द्रमाके १ ५ वर्ष दशा है ऐसेही अंतर्दशाभी ५। ६ वर्ष से कम न होंगी तो जातकोतफल तो एकही है क्या समस्त अंतर्दशा ५५१६ वर्ष पर्यंत एकसाही फल होगा इसनिमित्त ब्रह्मादि अष्टादश आचार्योंके उपदेष्टा श्रीसूर्य्यने ताजिकशास्त्र बनाया जिससे वर्ष प्रवेश मासप्रवेश दिनप्रवेश पर्य्यत गिननेसे दिन २ पर्यंत फल ज्योतिषी कहसकते हैं अतएव बृहज्जातकके अनुवाद करने उपरान्त ऐसाही कुछ ताजिक ग्रंथकाभी अनुवाद करना चाहिये ताजिक ग्रंथों में मुख्य जीर्णवाजिक है उसीकी सारणी नीलकंठ दैवज्ञ विरचित नीलकंठी है. यहग्रंथ पाठमें थोडा अर्थ बहुत और संमत होनेसे इसकी भाषाटीका सर्व साधारणके बोंधन योग्य डी बोली में परमकारुणिक श्रीबदरीशमूर्ति गढवाल राज्याधीश श्री ५ महाराजा कीर्तिशाहसाहबकी आज्ञानुसार करताहूं. इस ताजिक शास्त्र में कोई धर्मशास्त्र के वचन "नावदे यावनी भाषां नगच्छेज्जैनमंदिरम् | हस्तिना पीढयमानोपि प्राणैः कंठगतैरपि ” ॥ इत्यादिसे दोषारोपण करते हैं कि, इसमें इकवाल इस्सराफ, इत्थशालादि बहुतसे फारसीके शब्दहैं इससे बा णोंको पाठयोग्य नहीं है" किंतु उनका स्थूल विचार है किं, ऐसे अन्य जातिके भाषा अवाच्य हैं तो प्रथम अमरकोश • पांडित्यमूलही दूषित होता है और ज्योतिष के अष्टादश संहिता कारक "पिता- मह, व्यास, वसिष्ठ, अत्रि, पराशर, कश्यप, गर्ग, मरीचि, मनु, अंगिरा, लोमश पुलस्य, गुरु, शौनक इत्यादि हैं" इन्हीं से ज्योतिषशास्त्र प्रवृत्त भयाहै, यवना- ..चार्ग्य कृत यवनजातक भी सर्वसंमत प्रमाणग्रंथ है और यवनाचार्य्यने कुछ अपनीही कल्पना नहीं करी किंतु गुरुपदिष्ट वैसाहीथा उक्तंच रोमकेण- •