पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/७०

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(६२) ताजिकनीलकण्ठी | अनुष्टु० - वृश्चिकस्थः शशीभौमः कर्केतत्रेत्थशालतः ॥ अधमाधमकंबूलंका विध्वंसदुःखदम् ॥ ३३ ॥ जो ज़न्द्रमा वृश्विकका और मंगल कर्कका हो परस्पर इत्थशाली हो तो अधमाधम कंबूल कार्य्यनाशक होता है, इसका हेतु इनके अर्धमाधिकारी होनेसे है ॥ ३३ ॥ अनु. ० – एवंपूर्वोक्तभेदानामुदाहरणयोजना || उक्तलक्षणसंबंधादूहनीयाविचक्षणैः ॥ ३४ ॥ ये भेद आदि अंत में मुख्य हैं, इनके बीचके चौदह भेद उक्त लक्षण संबंधसे जानने एवं प्रकार सोलह भेद जो प्रकट हैं, इनके तो पृथक् २ उदाहरण कहादिये हैं, उपरांत इनके बहुत भेद होते हैं बुद्धिमानोंने अपने बुद्धि बलसे उक्त लक्षणोंके आधारसे जानलेने ॥ ३४ ॥ अनुष्टु० - मेषस्थेब्जेशनीत्यादि दृष्टांतौ मंदशीघ्रयोः ॥ एकर्क्षावस्थितावित्थशालादीनपरेजगुः ॥ ३५ ॥ प्रकारांतरसे एक राशिस्थ शीघ्रमंद ग्रहोंके मुथाशल कहते हैं, कविता, “मेपस्थेब्जे शनिना कर्कस्थे भूभुवास्त्रिया | मकरस्थेन गुरुणा सहमनिस्थज्ञं न शुभं च १ " यह आर्म्याछंदका भेद समरसिंहकृत है। जिसका प्रतीक मेषस्यें ब्जेशनीत्यादि, आचार्य्यने कहा है, अर्थ इसका यह है कि, मेषके चंद्रमा और शनि परस्पर अंशोंसे मुंथशिली हो तो मध्यमाधम कंबूल अशुभ फल कर्त्ता होता है यहां चंद्रमा मेपमें स्वगृहोच्चाधिकारी भावहै, परन्तु स्वीय नवांश है और शाने नीचका हुवा ऐसे इस योगकी प्राप्ति हुई और चन्द्रमा मंगल कर्क इत्यशाली हो तो एक स्वगृह एक नीचका होने में उत्तमाधम कंबूल होता है २ तथा चंद्रमा शुक्र कन्या में परस्पर इत्थशाली हों तो शुक्र नीचका और चन्द्रमा कन्या में अपने अंशपर होनेसे यह मध्यमाधमकंबूल होता है ३ तथा चंद्रमा बृहस्पति मक रमें परस्पर मुथशिली हों तो वृहस्पति नीचका चन्द्रमा स्वनवांशका होनेसे मध्य- माधमकंबूल होता है ४ तथा चन्द्रमा बुध मीनमें इत्यशाली हो तो बुध नीचका और चन्द्रमा स्वनवांशका होनेसे मध्यम मध्यम कंबूलहोता है, ५ ये.