पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/७३

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भाषाटीकासमेता । (६५) शुन्याध्वग चंद्रमा उसी राशिस्थित शून्याध्वंग ग्रहसे इत्थशाली हो तो यह गैरिकम्बूल अशुभ फल देता है, यह गैरिकम्बूल पारसीय पद ( गैरकबूल ) अंगीकार न करनेका अर्थ कबूलका विपरीत अशुभही है यहां जो कम्बूल भदेके तुल्य फलदेना एक पक्षकाहै इसमें राश्यंत राश्यादिवर्त्तमान इत्थशाल भाव प्राप्त होनेसे तद्वत् हुवा, अगैरिकम्बूल गैरकम्बूलही है, यह ताजिकवेत्ता आचायका सम्मतहै ॥ ४० ॥ ४१ ॥ अनुष्टु० - लप्स्येसुखमितिप्रश्ने सिंहल रविःक्रिये ॥ अष्टांशः खपः ‘भेभौमोशैरविभिस्तयोः ॥ ४२ ॥ इत्थशालोस्तितत्रे

कन्यायांचरमेशके || स्वर्शादिपदहीनस्यनेत्थशालोस्यके

नचित् ॥ ४३ ॥ स्वस्वोच्चगेनशनिनाऽन्यर्क्षस्थेनेत्थशालकृ- त् ॥ गैरिकंबूलमन्येनसहायाचाभदायकम् ॥ ४४ ॥ गैरिकम्बूलका उदाहरण, सुखप्राप्ति प्रश्नमें सिंह लग्न लग्नेश सूर्ध्य मेषके आठ अंशपर नवम स्थानमें, कार्येश मंगल सप्तम, कुम्भके १२ अंशपर है, इनका परस्पर मुथशिल है, अब इस योगमें चन्द्रमा द्वितीय भावमें, कन्याके अन्त्य २९ अंशमें पूर्वोक्त प्रकारसे शून्यमार्ग है, इसका लमेश गैरिकन्जूल, वा कार्येशसे मुथशिल नहीं है, परन्तु चन्द्रमा, होनेवालाहै, यह राशि शनिका इत्थशाल योग्य गैरिकंवूल. तुलाका उच्च शनि यहां ७ 24 अंशपर है कि, लग्नेश कार्येश सू० मं० के साथ इत्थशाली हो सकता है, अब चन्द्रमा २९ ६ ५ १२ तुलाके होनेपर शनिके साथ इत्थशाली होना चाहता है ऐसा होनेमें शनिका दोनहूके साथ इत्थशालीका प्रयोजन चन्द्रमाने ग्रहण किया. यह गैरिकम्बूल योग चन्द्रमाके प्रभावसे शनिने किया अर्थात् खप्राप्ति फल तीसरे मनु - प्यके सहायतासे होगा, यह प्रथम प्रकार हुवा पुनः लग्न और सभी यथा - चत् हैं, और तुलामें जैसा शनि पूर्व कहा था वैसा बुधादिकोही ग्रह शून्या- ५ 4 1