पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/७८

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(७०) 66 ताजिकनीलकण्ठी | उदाहरण .20 17 सुखप्राप्ति प्रश्न में तुला लग्न लंग्नेश शुक्र कर्कके दश अंशमें सुख भावेश | शनि कुंभके उनतीस अंशपर है. इनका इत्यशाल नहीं है, परंतु हस्पति मीनके पांच अँशपर है। इसको शीघ्रंगति शनि कुंभके २९ अंशपर मीनको गंतव्य होनेसे और बृहस्पति के साथ भविष्य मुशिल करनेसे अपना तेज बृहस्पतिको देताहै यहभी कार्ग्यसाधक योग है. सुखप्राप्ति करेगा ॥५०॥ उपजा० - लग्नेऽथकेन्द्रेनिकटेपिवास्यविलग्नदर्शीस्वगृहोच्चहके ॥ शल्लहेस्वेनिजहद्दगोवाबलीग्रहोमंदगतिस्त्वशीघ्रः ॥ ५१ ॥ वृ१२ तंवीरयोग. ६ - ७ ४११० पंद्रहवां कुत्थ्योगका लक्षण, कुत्थ पारसीय शब्दसे बलीग्रह लिया- जाता है वह बहुत प्रकारका है. इस कारण प्रथम वलवत्ता कहते हैं कि और स्थानोंसे लग्नगत ग्रह बली. तदभावमें अन्य केंद्रगत ४ | ७ | १० बळी होता है तथापि लग्नकी अपेक्षा न्यून ही होता है इनसेभी पणफर आपोक्किम २।५।८।११।३।६।९।१२ में न्यून होता है. दुरफमें तो६।८।१२स्थानों में निर्बली कह दिया है. केंद्रपणफर आपोक्किममें क्रमसे बल न्यून होता है और लग्नदर्शी तथा स्वोच्च स्वद्रेष्काण स्वनवांश स्वहद्दामें यह बली होता है • तथामध्यगति. ( नंदाक्षा भुजगारवे: ) इत्यादि पूर्वोक मध्यगतिपर जो ग्रह हो वह बलवानू और अल्पगति उससे न्यूनबली विशेष गति अधिक बली होता है. इसमें युक्ति यह है कि लग्नगत ग्रह पूर्ण (६०) बली, पणफरमें आधा ( ३० ) आपोक्लिममें चरण ( १५ ) वीर्य्य होता है, संधिमें अनुपात करना तब लग्नदर्शी ग्रह "अपास्य पश्यन्निजदृश्यखेटेत्यादि” से पूर्ण पापहाटसे पादोन इत्यादि तथा स्वगृही ग्रह पूर्णवीर्य स्वगृहसे सप्तम में निर्वीर्य और अंतर में त्रैराशिक विधिसे बल लेना. दुरफमें स्वगृही ७भाव बल पावै इत्यादि अंतरका नैराशिक, उच्चबल विधिवत् करना. सूर्य चंद्रमा के एक गृह होनेसे