पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/७९

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

भाषाटीकासमेता | (७१) यही होगया भौमादियोंके दोराशि गृह होनेसे अपने गृहसे सम्म गृह शोधके ६से न्यून हो तो वही रखना,६ से अधिक होतो बारहमें शुद्धकरलेना उपरांत उसके अंशादिमें ३० का भाग लेना लब्धिकलादि फल होगा, यह संप्रदाय युक्त है, यहभी स्मरण चाहिये कि स्वगृहारंभ में पूर्ण बल ( ६० ) और उसके सप्तम भावारंभ • अंतरमें अनुपात जैसे १ राशि षष्ठ्यंश १८० से पूर्ण ६० बल मिलता है तो अ क इष्टराशिसे कितना मिलेगा, यहां६० से अपवर्त्तन करदिया तो गुणक १ भाजक ३० हुआ इत्यादि १ उच्चबल पूर्वोत ही है २ द्रेष्काणारंभ में ५ बल और समाप्तिमें पूर्ण १० और समाप्त होही गया तो ० शून्यबल होता है. जैसे द्रेष्काण भुक्त भोग्यांशोंका अंतर अंशादि बारह से गुनकर बल मिलता है पांच अंशसे ६० है तो शेषसे कितना इत्यादि ३ ऐसाही मुशल्लहमें और हृद्दामें भी जानना. गतिबल के निमित्त सूर्य चन्द्रमा नित्य शीघ्र होनेसे गति बल तुल्य है, मौमादियों के ५ होता है इति ॥५१॥ ( ॰जा॰) - कृतोदयोमार्गगतिःशुभेन तेक्षितेः खस्यदृष्ट्या ॥ श्रुताख्ययानाधिगतोनयु : रेणसायंचसितेंदुभौमाः ॥ ५२ ॥ और प्रकारसे बलवत्ता कहते हैं, कि जो ग्रह उदय हुआहै जो मार्ग गति अर्थात् वक्र होकर मार्ग हुआ है जो शुभ ग्रहयुक्त वा है और जिसपर क्रूर ग्रहकी क्षत १० | ४ | ७ | १ दृष्टिहै तथा जो क्रूरयुक्त नहीं है, वह बलवान् होताहै, समय बलके निमित्त सायंचसितेंदुभौमा' इस पदका अर्थ आद्यश्लोकमें कहेंगे. यहां बलगणनेकी विधि यह है कि उदय बलके वास्ते उदयदिनमें पूर्ण ६० बल अस्तदिनमें • शून्यबल होता अंतर दिनोंका अनुपात करना जैसे उदय दिनसे अस्तदिन पर्यंत जितने दिन हैं उनका आधा करके जो उसमें ६० बल होताहै तो इष्ट दिनोंमें 'कितना होगा यह त्रैराशिक विधिहै १ मार्गगति ग्रहका बल पूर्ववत् ही जानना, २ शुभ युक्त बलके लिये उसके समानलिप्ता पर्यंत होतो ६० • बल, न्यूनाधिक हो तो दोनहूंका अंतर करना यह अंश ३० से न्यून होगा, { · पुनः वे अंशादि दुगुणे करनेसे बल होता हैं ३ शुभ दृष्टि बल दृश्य ग्रहकी