पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/८०

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(७२) ताजिकनीलकण्ठी | पूर्वोक प्रकार दृष्टिमें उसकी चौथाई घटायके दृष्टिबल होता है, ४ ऐसेही औरभी जानने ॥ ५२ ॥ • ( उ० जा० ) यदोद यंते पररात्रिभागेजीवार्कजावद्विनराः सवीर्याः ॥ अन्येनिशीनस्यनचैकभागे स्थिताः स्थिरक्षेच बलेनयुक्ताः ॥ ५३॥ शुक्र चंद्रमा मंगल सायंकालमें उदय हों तथा बृहस्पति शनि अर्द्ध रात्रिसे उपरांत, जिस समयमें उदय हों, तथा पुरुष ग्रह सूर्य्य भौम बृहस्पति, दिनमें स्त्री ग्रह चंद्रमा बुध शुक्र शनि रात्रिमें तथा स्थिर राशि, २ | ५ | ८ | ११ में जो ग्रहहो, इतने सभी बलवान होते हैं, बलानयन प्रकार है कि सायं समयोदयी शुक्र तो होताही नहीं चन्द्र भौमका व सूर्य स्पष्टका अंतर करके उसमें छः घटाय देना, शेपके अंश करके तीनसे भागलेना लाभबल होगा यहां भी पूर्णबल साठ ही है उत्पत्ति उच्चवल तुल्य है शुक्र के, व सूर्य के अंतर करके छः से गुनदेना पांचसे भागदेना लाभ बल शुक्रकाहोगा इसकी उपपत्ति, जो पचास अंशोंसे ६० बलमिलता है तो इष्टांशके कितना यह त्रैराशिक है, इनमें १० से अपवर्त्तन करके गुणक ६ भाजक ५ होताहै १ अपररात्रिस्थं वृहस्पति शनि बल निमित्त जब अर्द्ध- त्रोत्तर का इष्ट हो तो अर्द्धरात्रि से तीसरे शहर पर्यंत क्रम से बल पर्ण और तीसरे शहरसे क्रम करके चौथे शहर होने में बल शून्य होजाता है, अर्द्धरात्रिसे उपरांत इष्ट काल हो तो उसमें राज्यर्द्ध घटायदेना तीसरे प्रहर उपरांत हो तो रात्रिमानमें घटाय देना शेष साठसे गुनाकर प्रहर प्रमाण घट्यादिसे भागलेना लब्धि गुरुशनिका वंल होगा २ दिवाग्रहबलविधि यह है कि जो इष्टकाल प्रातः कालसे मध्याह्नके भीतर हो तो दिनंगतलेना मध्याह्नोत्तर सायंकालके अंतर हो तो दिनशेप लेना उसे ६० से गुनाकर दिनाईसे भागलेना दिवाबल ग्रहोंका बल मिलेगा उपपत्ति यह है कि जब दिनार्द्ध में६० बल मिलता है तो दिनगत वा दिनशेष अमुक संख्यासे कितना मिलेगा ३ इसी विधिसे रात्रि बली ग्रहोंका बल राज्यर्द्धसे मिलता है. ४ सूर्य्यके भावबलविधि यह है कि ग्रहमें सूर्य घटाय देना, शेप अंशादि त्रिगुना करके ६० से शुद्ध करना बल ●