पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/८१

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भाषाटीकासमेता । (७३) होता है इसमें सूर्य्यके प्रवृत्ति निवृत्तिके २० अंश हैं इनमें ६० बल मिलता . है तो पूर्वोक्त अंतरसे कितना मिलेगा, गुणक भाजकके २० से अपवर्त्तन करके गुणक तीन भाजक १ एक होता है. ५ स्थिर राशिबल यह है कि राशिके आरंभ में बलका आरंभ १५ अंशमें पूर्ण ६० पंद्रह अंशमें ३० तो शून्यबल क्रमसे घटता बढता है ग्रहराशिके पूर्वार्द्ध में हो भुक्तांश उत्तरार्द्ध में हो तो भोग्यांशलेने वही चतुर्गुणा करके बल होता है अनुपात यह है कि ३५ अंशसे पूर्ण६० बल होता है तो भुक्त वा भोग्यांशों से कितना होगा ६ किसीका मत यह है कि ग्रह राश्यादिमें पूर्ण बली मध्यमें मध्य अंत में शून्य बली क्रमसे होता है, तो ग्रहके अंशादि ३० से शुद्धकरके शेष द्विगुण करना बही बल होता है "अनुपात" जो ३० अंशसे पूर्ण बल ६० मिलता है तो ग्रह भोग्यांशों से कितना मिलेगा यहां दोनहूं में ३० से अपवर्त्तन करके शेषद्वि- गुण बल होगा, यह अर्थयुक्त है ॥ ५३ ॥ उपेंद्रव० - स्त्रियश्चतुर्थात्पुरुषावियद्भाद्भषट्कगाओजभगाः पुमांसः ॥ समेपरेस्युर्बलिनोविमृश्यविशेषमेतेषुफलंनिगद्यम् ॥ ५४ ॥ और प्रकारसे बल कहते हैं कि स्त्री ग्रह च. बु. शु. शं. चतुर्थ भावसे दशम पचैत छः स्थानमें और पुरुष ग्रह सू. मं. वृ. दशमसे चतुर्थ तबली होते हैं तथा विषम राशियों में पुरुष ग्रह सम राशियोंमें स्त्री ग्रह बली होते हैं यहां स्त्रीग्रह चतुर्थ से दशम और पुरुषग्रह दशमसे चतुर्थ पर्य्यत, सभी भावोंमें तुल्यही बल पाते हैं यही उपपत्ति है और विषम सम राशिगत पुं- स्त्री ग्रहोंका बल स्थिर राशिसंस्थ ग्रहवत् पूर्वोक्त प्रकारसे जानना इतने प्रकार बलाबल कहनेका प्रयोजन यह है कि इत्थशाल कर्त्ता वा इत्थशाल कर्ना चाहता ग्रह उक्त प्रकारोंसे जैसे में हो वैसाही फल कहना, यहां उक्त बल भेदों से किसी प्रकार बली जो इत्थशाली ग्रह है उसोको कुत्थ योग कहते हैं न कि कुत्थ शब्दसे बली ग्रह लिया जाताहे ॥ ५४ ॥ स्रग्धरा - लग्नात्पष्टांत्यर्मेत्येऽनृजुररिगृहगोनीच गोवऋगामीकरैर्युक्तो- स्तगोवा यदिचमुथशिलीक्रूरनीचारिभस्थैः ॥ क्षुदृष्ट्याकूरह