पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/८२

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(७४) ताजिकनीलकण्ठी | ष्टोव्ययरिपुमृतिगैरित्थशालंविधित्सुः कुर्वन्वानिर्बलोयंस्वगृहगन भगोराहुपुच्छास्यवर्ती ॥ ५५ ॥ उपजा ० - अनीक्षमाणस्तनुम स्तभागस्थितः स्वभोच्चादिपदैश्चशून्यः ॥ क्रूरेसराफीर्नसवीर्य्ययु क्तः कार्य्यविधातुंनविभुर्यतोसौ ॥ ५६ ॥ अब सोलहवें दुरफं योगका लक्षण कहते हैं, पारशीय दुरफ शब्द निर्बलवाची है यह निर्बलता बहुत प्रकार होती है इसलिये निर्बलप्रकार प्रथम श्लोकसे यह है कि वर्ष प्रश्न वा दिन लग्नसे जो ग्रह छठे आठवें बारहवें स्थान में हो तथा गतिरहित यद्वा शत्रुराशिस्थ नीचराशिगत वक्रगतिवाला, तथा पापयुक्त और अस्तंगत ग्रह यद्वा जो शत्रु ग्रहसे वा नीच शत्रुरा- शिगत ग्रहसे इत्थशाली हो और जिस पर पापग्रहकी क्षुत दृष्टि ४ । १० । ७ । १ हो और छठे आठवें बारहवें स्थानगत ग्रहसे जिसका इत्थशाल हो वा कर्ना चाहता हो, या अपनी राशिसे सप्तम राशिमें हो, तथा राहुके पुच्छ वा मुखमें हो राहुके भुक्तांश पुच्छ भोग्यांश मुख होता है इतने प्रकार युक्त ग्रह निर्बल होता है. इसके निर्वलांक गणितकी पूर्ववतही विधिहै जैसे शत्रु राशिगतका स्थिर राशिगत ग्रह तुल्य विधिसे करना वऋग्रह के लिये - वक्रदिनोंमें पूर्ण फिर क्रमसे पूरे दिनोंमें शून्य होताहै, मध्यदिनोंसे पूर्ण (६०) मिलताहै तो इष्टदिनोंमें कितना मिलेगा इति । तथा क्रूर युक्त ग्रह नौ अंशके भीतर शून्य उपरांत भाव फलके तुल्य बललेना, अस्तग्रहको उदित ग्रहवत् विधिसे गैराशिक, करना, उपरांत ६० से शुद्ध करके अशुभ चलमिलता है इत्यादि पूर्वोक्त विधियोंसे सभीका हीन बललेना ॥५५॥ और प्रकार अशुभ बल प्रकार कहते हैं कि जो ग्रह लग्नको नहीं देखता वह निर्बल होता है जिस भाव में जिस ग्रहकी दृष्टिका अभाव है उसमें गणितसे जो कुछ अंक पाया है वह उसके आगे के भावके अंक में घटाय देना शेष अशुभ दृष्टि होतीहै १ तथा अस्तंगत सूपं जिस नवांशक में है उससे सप्तम नवांशमें जो हो वह निर्बल होता है. पूर्वविधिसे जो बल अस्तका आता है। 4