पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/८३

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भाषाटीकासमेता । (७५ ) उसे ६० में शुद्ध करके अशुभ बल होता है, किसीका मत है कि सूथ्य जिस राशि नवांशमें अस्त होता है उसमें वर्त्तमान ग्रह निर्बल होताहै परंतु जिस दिन सूर्ध्य उदय नवांशसे अन्यमें अस्त हो उस दिन यह विचार है. सूर्य्य तो सर्वदा उदय नवांशमें अस्त होता है कदाचित् बदलता है . २ तथा स्वगृह उच्च हद्दा द्रेष्काण नवांश संज्ञक पदोंसे रहित यह निर्बल होता है यहभी स्वगृहादियोंका शुभ बल जो पूर्व कहा गया है उसे ६० में शुद्ध करनेसे अशुभ बल होताहै और ( क्रूरेसराफी) ईसराफ योग पूर्व कहा गया है, जो ग्रह पाप ग्रह के साथ ईसराफी अर्थात् शीघ्र घन भाग मंद अल्प भाग हो तो यह अपना तेज दूसरेको नहीं देसकता इसकारण यहभी निर्बली होता है मंदग्रहसे पीछे शीघ्रग्रह स्वदीप्तांशों के अंतर हो तो शून्य बल इसके उपरांत कमसे मंदग्रहोंके अंशोंके समान होनेपर पूर्ण बली होताहै, बीच में हो तो अनुपात जैसे यदि अमुक दप्तांशोंसे पूर्ण (६०) बल मिलता है तो दीप्तांशों में भुक्त अंशोंका कितना मिलेगा ऐसाही ईसराफकीभी रीति है, इत्थशालीग्रह इत्युक्त प्रकारों में किसी प्रकारसे निर्बल हो तो इत्थशालोक्त फल नहीं देता, इसका नाम दुरफ योगहै ॥ ५५ ॥ ५६ ॥ शालि०-चंद्रः सूर्य्या द्वादशेवृश्चिकाद्येखंडेनेष्टोंतेतुलायांविशेषात् ॥ राशीशेनादृष्टमूर्त्तिनसर्वैर्दृष्टो यःशून्यमार्गः पदोनः ॥ ५७ ॥ सब ग्रहों के दुरफ कहने उपरांत केवल चद्रंमाका दुरफं कहते हैं कि जो सूर्य्यसे बारहवें स्थानमें चंद्रमा हो तो निर्बल होता है तथा वृश्चिक के पूर्वार्द्ध १५ अंशपर्यंत और तुलाके उत्तरार्द्ध १५ अंश उपरांत तद्वत् चंद्रमा जिस राशिमें है उसका स्वामी इसको न देखे, तथा चंद्रमाको कोई ग्रहनदेखे तथा शून्याध्वग जर्थात् स्वोच्चादि शुभाधिकार रहित हो तो इतने प्रकारसे चंद्रमा निर्बल होता है. ग्रंथांतरोंमें चन्द्रमाके निर्बल होनेके दश प्रकार ये हैं कि नीचगत १ नीचस्थ ग्रहसे मुथाशली २ सूर्य्यके समीप १२ अंशके अभ्यं- तर ३ ( राहुमुख ) राहुके भोग्यांशों में ४ पापग्रहके साथ १२ अंशके भीतर ५ अपनी राशिसे सप्तम मकरका ६ धन राशिमें धन नवांशका, अपनी राशीसे सप्तम राशिमें ग्रह निर्बल होता है, जो कहा वह उससे A ।