पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/८४

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( ७६ ) ताजिकनीलकण्ठी । पूर्व राशिके एक नवांशको लेकर होता है ७अस्तंगतके ८ अस्तंगतके साथ मुथशिली ९ शत्रुक्षेत्रगत १० इतने प्रकारोंसे चंद्रमा निर्बल होताहै ॥ ५७ ॥ शालि०-क्षीणोभतेनाशुभोजन्मकाले पृच्छायांवाचंद्रएवंविचित्यः ॥ शुक्केभौमः कृष्णपक्षेर्कसूनुः क्षुदृष्टचेंदुंवीक्ष्यतेनोशुभोसौ ॥ ५८ ॥ और चंद्रमा कृष्ण पक्षकी एकादशीसे शुक्लकी पंचमी पतं तथा राशिके अंत्य २६ । ४० अंशसे ऊपर अर्थात नयम नवांशक में ( क्षीण) अशुभ होता है यह विचार जन्मकाल वा प्रश्नादिमें करना तथा मंगल शत्रु दृष्टि ४ । १० । ७ १ से शुक्ल पक्षके चंद्रमाको देखे और शनि ऐसी दृष्टि से कृष्ण पक्षके चन्द्रमाको देखे तो वह चन्द्रमा संपूर्ण कार्यों में अशुभ होता है ॥ ५८ ॥ वसंततिलका ०-शुक्केदिवानृगृहगोर्कसुतः शशांकं कृष्णे कुजो- निशि समर्क्षगतःप्रपश्येत् ॥ दोषाल्पतां वितनुतेऽपरथाबहुत्वं प्रश्नेथवाजनुषिबुद्धिमतोहनीयम् ॥ ५९ ॥ जो शुक्लपक्ष और दिनमें ( पुरुष राशि ) विषम राशि में बैठा शनैश्चर चन्द्रमाको देखे तथा कृष्णपक्ष और रात्रि में ( समराशि ) स्त्री संज्ञक - राशिमें बैठा मंगल इसे देखे तो चन्द्रमाका पूर्वोक्त (दुरफ ) निर्मलताका दोष हो जाता है इसप्रकार श. मं. की दृष्टि न होनेमें दोष प्रबलही रहताहै यह विचार जन्म तथा प्रश्न उपलक्षणसे वर्षादियों में विचारना चाहिये, इन दोनहूंको ( कुत्थ) बलवान् और ( दुरफ ) निर्बल योग सभी ग्रहोंके सर्वदा विचारने चाहिये. इन दोनोंका बल उक्त प्रकारसे गिनकर इनका अंतर करना जो कुत्थ बल अधिक हो तो वह ग्रह अशुभ स्थानमेंभी शुभ देता है, वह शुभ स्थानमें अत्यन्तही शुभ देता है जो दुरफ बल अधिक हो तो वह ग्रह शुभ स्थानमेंभी अशुभ फल देता है अशुभ स्थानमें अत्यंत अशुभ देता है ग्रह बलतारतम्यसे फल सर्व विचारना. इति १६ योग स० ॥ ५९ ॥ अथ हर्षवलानयनम् । 1 उ० जा० - नंदत्रिषड्लग्नभवर्क्षपुत्रध्ययाइनाद्धर्पपदंस्वभोच्चम् ॥ -