पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/८५

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भाषाटीकासमेवा । (७७) त्रिमंत्रिमंलमभतः क्रमेणस्त्रीणांनृणांरात्रिदिनेचतेषाम् ॥ ६० ॥ अब सामान्यतासे चार प्रकार हर्षस्थान कहते हैं कि सूर्य नवम • स्थान में चंद्रमा तीसरे मंगल छठेमें बुध लग्नमें बृहस्पति ग्यारहवेंमें शुक्र पंचम शनि बारहवेमें हर्षबल पाते हैं दूसरा सूर्य्यादि ग्रह अपने २ उच्च तथा अपनी २राशिमें हर्ष बली हो२तीसरा जैसे १ । २ । ३ भावोंमें स्त्री ग्रह ४ । ५ । ६ में पुरुष ग्रह तथा ७ ।८ । ९ में स्त्री ग्रह १० | ११ | १२ में पुरुष ग्रह ३ चौथे रात्रि में स्त्री ग्रह दिनमें पुरुष ग्रह बल पातेहैं ४ यह बल प्रश्न और जन्म वर्षादियों में भी विचारना. इनका न्यास चक्र बनायके, जिस स्थानमें जो ग्रह बल पावे उसके उससंज्ञाके कोष्ठ में ५ श्री० कुण्डली वर्ष. स्थान ० हर्षबलचक्रम् | चं१० वृ११ x सू १ शु१२ बुमरामु र चं मं बु बृ शु श D ० ० ० स्वरा०० ० स्वोच्च ५ ० स्त्री.पु. ० स.दि।५ ० योग. /१०० ०५१०५५ अंकलिखना और स्थानोंमें शून्य करदेना. पीछे सबका योग करना. जैसे कोई ग्रह एक स्थान में बल पावे तो५ही योगहुवा दोनोंमें बली हो तो १० तीनमें १५ चारोंमें २० योग होगा इसे हर्ष विंशोंपका बल कहते हैं इसके अनुसार फल कहना विशेष विचार यह है कि जो पूर्व कुत्य दुरुफ बल त्रैराशिकसे मिले हैं उनको और हर्षबलको त्रिगुण करके मिलायदेना शुभाधिक हो तो शुभफल विशेषहीन बलाधिक हो तो अंतर करके अशुभ फल विशेष कहना. यह ताजिक शास्त्रवेत्तायों का संप्रदायहै ॥ ६० ॥ शार्दूल० - श्रीगर्गान्वयभूषणगणितविञ्चितामणिस्तत्सुतोऽनं- तोनंतमतिर्व्यधात्खलमतध्वस्त्यैजनुः पद्धतिम् ॥ तत्सूनुः खलु नीलकंठविधोविच वानुज्ञया योगान्पोडशहर्षभा- निच तथासंज्ञाविवेकेव्यधात् ॥ ६३ ॥ ० ० ० ० ० ० ० O 8 ० ० ० ०० ५५ ०५ ० ०