पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/८७

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भाषाटीकासमेता । (७९ ) ॥ ५ ॥ भृत्य ६६ अंग ६७ प्राप्ति ६८ निधि ६९ ज्ञाति ७० ऋण ७१ बुद्धि ७२ आधान ७३ धैर्घ्य ७४ सत्यक ७५ इतने औरभी हैं ॥ १ ॥ २ ॥ ३ ॥४॥ इन्द्रव॰—सूर्योनचंद्रान्वितमह्निल वींद्रर्क तनिशिपुण्यसंज्ञम् ॥ शोद्व्यर्क्षशुद्धयाश्रयभांतरालेलग्नंनचेत्सैकभमेतदुक्तम् अब सहमोंकी बनाने की रीति कहते हैं प्रथम पुण्य सहमके लिये यह है कि, वर्षप्रवेश वा जन्मादि काल दिनका हो तो तात्कालिक स्पष्ट चन्द्रमामें तात्कालिक सूर्घ्य स्पष्ट घटायके तात्कालिक लग्न स्पष्ट जोडदेना, रात्रिका लग्न हो तो सूर्य्यमें चंद्रमा घटायके लग्न स्पष्ट जोडदेना, यह पुण्य- सहमका राश्यादि स्पष्ट होता है, परन्तु जिसमें संस्कार औरभी है, जो ग्रह घटाया जाता है वह शोध्य और जिसमें घटाया जाता है वहशुद्ध्याश्रय कहाता है शोध्यक्ष और शुद्ध्याश्रयकेबीच अर्थात् शोध्य ग्रहकी राशिसे शुद्ध्याश्रयग्रह स्थित राशि पर्यंत लग्न न हो तो पूर्वानीत पुण्यसहममें एक (१)राशि जोडदे- ना ऐसा न हो तो न जोडना ( उदाहरण ) सूर्य्य स्पष्ट राश्यादि ४ । ८ १० चन्द्र स्पष्ट राश्यादि ६ | १२ | १० लग्न स्पष्ट | ८ | १० | १० दिनके वर्ष प्रवेशमें सूर्य्य चन्द्रमामें घटाया शेष२ । ४ । ० लग्न जोडदिया तो १० १४। १०अब संस्कार है कि शोध्यक्ष सिंह ८ अंशसे शुद्धयाश्रय तुला १२ ..अंशकेभीतर लग्न न होनेसे एक जोडदिया तो ११॥ १४ ॥१० यह पुण्यसहम हुआ, रात्रिका वर्षप्रवेश हो तो उदाहरण सूर्य्य ८|४|१०में चन्द्रमा६।१२ १० घटाया शेष १ । २२ १० लग्न ० | १० | ० जोडदिया तो भया २|२|० सूर्य्यमें चंद्रमा घटाया इस लिये तुला १२ अंशसे धन ४ अंशप - येत लग्न न होनेसे सैक करना इससे ३ । २ । यही पुण्यसहम भया शोद्ध्याश्रय राश्यंतर लग्न न हो तो राशिमें १ जोडना यह संस्कार सभी सहमोंमें जानना ॥ ५ ॥ 0 0. उ० जा० - व्यत्यस्तमस्मा रुविद्ययोस्तुसंसाधनं पुण्यवियुक् रे - ज्यः || दिवाविलोमं निशिपूर्ववत्यशोभिवंतत्सहमंवदंति ॥ ६ ॥