पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/८८

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(८०) ताजिकनीलकण्ठी | अब गुरुविधा और यश सहमकी विधि कहते हैं, इनमें गुरु और विद्या, सहम तो पुण्य सहमके विपरीतहै जैसे दिन में सूर्य्य में चन्द्रमा घटायके रात्रिमें चन्द्रमामें सूर्य घटायके लग्न जोडदेना 'शोद्धयक्षैत्यादि' संस्कार करके गुरु और विद्यासहम होते हैं विद्यासहमको ज्ञानभी कहते हैं ३ यश समहके लिये दिनमें बृहस्पतिमें पुण्य सहम घटायदेना रात्रिमें पुण्य सहममें बृहस्पति घटा- यदेना शोद्ध्यर्क्षेत्यादि सर्वत्रही है यह यशसहम होता है ॥ ६॥ रथोद्ध० - पुण्यसद्मगुरुसद्मतस्त्यजेव्यत्ययोनिशिसितान्वितंचतत् ॥ सैकतातनुवदुक्तरीतितोमित्रनामसहमविदुर्बुधाः ॥ ७ ॥ मित्र सहम निमित्त दिनमें गुरु सहममें पुण्यसहम घटायके शुक्र जोड देना, रात्रिको पुण्य सहममें गुरु सहम घटायके शुक्र जोडा शोद्धयर्क्ष शुद्धयाश्रय भांतराल लग्न हो तो १ जोड़देना मित्र ५सहम होताहै ॥ ७ ॥ शालिनी - पुण्याद्भौमंशोधये दुक्तवत्स्यान्माहात्म्यंतन्नक्तंमस्मादिलो- मम्॥ शुक्रंमंदादह्निनक्तं विलोममाशाख्यंस्यादुक्तवच्छेषमूह्यम् ॥ ८ ॥ माहात्म्य और आशा सहमके लिये पुण्य सहममें मंगल घटाके लग्न जोड़देना शोध्यक्षैत्यादिसे सैक प्राप्ति हो तो १ जोड़देना दिनका माहात्म्य सहम ६ होता है रात्रिको विपरीत, जैसे मंगलमें पुण्य सहम घटायके शेष पूर्ववत करना आशा सहमको शनिमें शुक्र घटायके शेष लग्न में जोड़ना एक योगकी प्राप्ति हो तो जोड़ना. दिनका आशा सहम होताहै, रात्रिको विपरीत जैसे शुक्रमें शनि, घटायके शेष पूर्ववत् करना. आशा इच्छाका नाम है ॥ ८ ॥ इन्द्रवज्रा – सामर्थ्यमारात्तनुप॑विशोध्यनक्तंविलोमंतनुपेकुजेतु ॥ जीवाद्विशुध्येत् सततं पुरावद्धातार्किहीनाद्वरुतःसदोह्यः ॥ ९ ॥ दिनको लग्नेश मंगलमें घटाना रात्रिको मंगल लग्नेशमें घटाय देना जब लग्नेश मंगलही हो तो दिन तथा रात्रिमें बृहस्पतिमें शुद्ध करना सामर्थ्य- सहम होता है तथा दिन रात्रिमें बृहस्पतिमें घटायके शेष पूर्ववत् करना यह भ्रातृसहम होताहै ॥ ९ ॥ . उपजाति - दिनेगुरो श्चंद्रमपास्यनक्तंरविंक्रमादकँविधूचदेयौ ॥ .