पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/८९

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भापाटीकासमेता । ( ८३ ) रीत्योक्तयागौरव मर्कमार्केरपास्यवामंनिशिराजतातौ ॥ १० ॥ दिनको बृहस्पतिमें चन्द्रमा घटायके शेपमें सूर्य जोड़ना, रात्रिको बृह- स्पतिमें सूर्य घटायके चन्द्रमा जोड़ना शोध्यक्षैत्यादि अन्तराल सूर्या चन्द्रमा न हो तो १ जोड़ना गौरवसहम होता है १० तथा दिनको शनिमें सूर्य घटायके और रात्रिको सूर्ग्यमें शनि घटायके पूर्ववत् लभ जोड़ना, शोध्यक्ष त्यादि संस्कार करके राजसहम होता है ११ यह पितृसहम१२ भी है ॥ ३० ॥ इंद्रव० - मातेन्दुतोपास्यसितं विलोमं नक्तंसुतोहर्निशमिंदुमीज्यात् ॥ स्याज्जीविताख्यंगुरुमार्कितोहिवाम॑निशीदंससमंवयांडु ॥ ११ ॥ दिनको चन्द्रमा में शुक्र घटायके रात्रिको शुक्रमें चन्द्रमा घटायके लन जोड़ना, मातृ और अंबु अर्थात् जलसहम होता है १३ दिनको और रात्रि- कोभी गुरुमें चन्द्रमा घटायके लग्न जोड़ना पुत्रसहम होता है १४ दिनको शनिमें बृहस्पति घटायके रात्रिको बृहस्पतिमें शनि घटायके लग्न जोड़ना जीवितसहम होता है १५ इसीको ऐश्वर्श्वसहममी कहते हैं असहम मातृ सहमही होता है सो कह चुके हैं १६ ॥ ११ ॥ इँ०व०–कर्मज्ञमारान्निशिवाममुक्तरोगारख्यमिदुतनुतः सदैव ॥ स्यान्मन्मथोलग्नपमिंदुतोह्नि वाम॑निशींढुंतनुपंसदाऽर्कात् ॥ १२ ॥ दिनको मंगलमें बुध रात्रिको बुधमें मंगल घटायके लग्न जोड़ना कर्मस- हम ३७ होता है, लनमें चन्द्रमा घटाय लग्न जोड़कें रोगसहम १८ दिनरांत्रि का होताहै,लग्नमें चन्द्रमा घटायके रात्रिको विपरीत करके लग्न जोड़ना काम- सहन ३९ होता है चन्द्रमाही लग्नेश हो तो दिन तथा रात्रि सूर्यमें चन्द्रमा घटाना ॥ १२ ॥ उ॰जा॰ - कलिक्षमेस्तोगुरुतोविशुद्धेकुजे विलो मंनिशिपूर्वरीत्या ॥ शास्त्रंदिने सौरिमपास्यजीवाद्वामं निशिज्ञस्ययुतिः परावत् ॥ १३ ॥ बृहस्पतिमें मंगल घटायके लग्न जोड़ना दिनका कलिसहम २० होता है, रात्रिको मंगलमें बृहस्पति घटायके लग्न जोड़ना क्षमासहमभी इसी प्रकारका