पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/९

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॥ श्रीः॥ अ ताजिकनीलक ठी भाषाटीकासमेता । शिवं शिवकरं शिवायुतमजं घालावितं समातृगुरु रूपिणं निखिलभैरवैः सेवितम् ॥ प्रणम्य शिरसा मुदा सर- भसा परं दैवतं सहस्रदलकर्णिकांतरगतं गभीरं महः ॥ १॥ मही- धरधरासुरो विबुधधर्म्मदत्तात्मजो विधाय खलु जातके ह- ति भाषया व्याकृतिम् ॥ तनोति किल ताजिके त्रिगणनील कंठ्याह्वये शुभां विवृतिमत्र वै नरगिरा हि माहीधरीम् ॥ २ ॥ भाषाकार निर्विन्त्रतापूर्वक ग्रंथसमात्यर्थ परब्रह्म गुरुरूपी शिवको प्रणाम सहित स्वकर्म प्रकाश कर्ता है। मंगल मूर्ति, सर्वथा श्रेय करनेवाला,. सशक्तिक अर्थात् उमासहित शंकर, स्वतःसिद्ध, सहस्रदल कमल कर्णिकांड तर्गत अतिरहस्य अलख अगोचर स्थानमें परमामृतसे प्लावित प्रसन्नवदन बैठा हुवा, चतुःषष्टि मातृका और समस्त भैरवोंसे समंतात्परिवेष्टित, यद्दा मातृका स्वर, भैरव व्यंजन इनसे सेवित प्रणवरूप परमदेवता गुरुरूपी ईश्वर को ( ससंघम ) आनन्दपूर्वक सशिरस्क प्रणाम करके विबुध धर्म- दत्तात्मज महीधरनामा ब्राह्मण, बृहज्जातककी भाषाटीका करने उपरांत सांप्रत में इसी ज्योतिष प्रकरण "ताजिकनीलकंठी" तीनों तंत्रकी सुगम सरल भाषामें माहीघरी टीका विस्तारित कर्त्ता है ॥ १ ॥ २ ॥ ग्रंथकत्ती आचार्य मुनिश्रेष्ठ गर्गवंशावतंस समस्त विदैवज्ञमुकुटमणि त्रिस्कंध ज्योतिश्शाश्चनिबंध कत्ती चिंतामणि ज्योतिर्विद् पौत्र अनंत ज्यो- तिर्वित्पुत्र श्रीनीलकंठ ज्योतिर्विद जीर्ण ताजिक शास्त्र के संज्ञातंत्र, वर्षतंत्र, प्रअतंत्र, तीन प्रकरणों के निर्माणोत्सुक होकर प्रथम संज्ञाविवेक नामक A