पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/९५

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भावाटीकासमेता । (८७) पुण्यसहम घटायके ग्यारहवां भाव जोडना अश्वसहम ५० होताहै, ये ५० सहम आचायक कहेगये. मतांतरसे जो अन्य सहम हैं उनमेंसे कोई तो इनहीमें अंतर्भाव है कोई सारणी में लिखेंगे सहमसारणी आवे है सहम विचार जिसके निमित्त करनाहै उसीके संबंधी भावसे सहमकल्पना करनी. जैसे भाइयोंके वास्ते तृतीयभावको स्त्री के निमित्त सप्तम भावको लग्न जानकर पुण्यादि सहम कल्पना करनी यहभी किसीका मत है ॥ २४ ॥ • उपजा० - स्वनाथहीनं सहमं तदंशाः स्वीयोदयघ्ना वि तांत्रिशा || तत्सद्मपाको दिवसैर्हि लब्धैः स्यात्तदशायां तदसंभवेवा ॥ २५ ॥ सहमका फल पाकसमय कहते हैं कि, सहमक़ा फल उसमें उस भावके स्वामीका स्पष्ट घटाय देना शेषके शीय लग्न खंडसे गुणना. ३०० तीनसौसे भाग लेना लब्धि उस सहमफल पाकके दिन जानना किसीका मत है कि पूर्वविधिसे जो दिन मिले हैं उनमें .३० का भागदेके लब्धि राशि जाननी तदनंतर वर्ष प्रवेशकालिक सूर्यराश्यादि कलापर्यंत में जोडदेना राशिस्थानमें १२ से अधिक होनेपर १२ से शेषकर देना यह सूर्य स्पट जिस समयपर आवे. वह समय सहम फल पाकका जानना कोई कहते हैं कि, हीनांश पात्यांश क्रमसे जब सहमेशकी दशा हो तब फल होगा, यह सर्व संमत है. इन दो मतोंमें यह निश्चय है कि, पूर्वोक्त प्रकारसे जो दिन मिले हैं, यदि उनके भीतर तत्स्वानीकी दशा हो तो दशाही में फल होजायगा. जब उक्तदिनोंसे उपरांत दशा हो तो दशाप्रारंभ दिवससे उतने दिनोंमें फल होगा. इसमें भी स्मरण चाहिये कि ऐसी विधिसे वर्षीत होजाय तो दूसरे वर्षमें फल कहना, परंतु इसमें बहुत शंका होती हैं इसलिये यादववाक्य है कि, "सहमेश्वरयोः कार्यमं- तरं पूर्वराशिकम् ॥ तयुक्तोको भवेद्यावांस्तादृक्संक्रांतिभे फलम् ॥” अर्थात जिस भावसंबंधी सहमका फल चाहता है उसके पूर्वभावसे उसका अंतर पाकसमय चाहिये अंश करके स्वदे