पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/९६

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(८८) ताजिकनीलकण्ठी। .. करके दशाप्रवेशसामयिक सूर्यस्पष्ट में जोडदे उसकें जितने अंश हों उतने सौर दिनोंमें फल होगा यह निश्चय है ॥ २५ ॥ इति महीधरकृतायां नीलकंठीभाषायां सहमाधिकारः समाप्तः । वसंततिलका - स्वोच्चादिसत्पदगतो यदिलग्नदर्शी वीर्य्या न्त्रितस्सहमपोयदिनेक्षतेंगम् ॥ नासौवलीरविशशिश्रितभेद दर्शपूर्णतलग्रपवलस्य विचारणेत्थम् ॥ २६ ॥ १ ॥ सहमेशोंका बलावल कहते हैं कि, अपने उच्चादि पूर्वोक्त शुभ स्थानों में होकर लग्नको यदा अपने सहमको सहमेश देखें तो बलवान् होते हैं. जो लग्नको न देखें तो सप्तपदगतभी निर्बल होता है और इसमें जन्मकालिक सूर्यराशीश १ जन्मकालिक चन्द्रराशीश २ जन्ममासकी पूर्णमासी जिस- लग्न में अंत हो इसका स्वामी ३ जन्ममासकी अमावास्या जिस लग्नमें अंत हो उसका स्वामी ४ इनका बलाबलभी इसी रीतिसे विचारना, इनके बलावलसे पुण्यसहमके तुल्य फल कहना ॥ २६ ॥ १ ॥ अनु० - पंचवर्गीबलेनोनो नहर्पस्थानमाश्रितः || अवलोयं लग्नदर्शी बलीस्वल्पेस्तिचेत्पदे ॥ २७ ॥ २ ॥ L जो ग्रह पंचवर्गी में ( हीन ) पाँचसे कम बली हो तथा हर्षस्थानमें न हो उपलक्षणसे लग्नदर्शी भी न हो वह निर्बल होता है जो त्रैराशिक मुसहसंज्ञक लघुस्थानमेंभी हो और लग्नको देखे तो बली होता है, स्वगृहोच " महाधि- कारी" स्वहद्दा मध्यम और स्वत्रैराशिक स्वमुसल्लह स्वल्पाधिकार कहेहैं यह सर्वत्र जानना ॥ २७ ॥ २ ॥ वसंतति● स्वस्वामिनाशुभखगैः सहितंचदृष्टं स्वामीवलीचय- दितत्सहमस्यवृद्धिः ॥ यत्स्वामिनाशुभखगैश्चनयुक्तदृष्टंतत्सं भवोनहि भवेदितिचिंत्यमादौ ॥ २८ ॥ ३ ॥ जो सहम अपने स्वामी शुभ यद्वा पापसे युक्त वा दृष्ट हो तथा शुभ ग्रहसे युक्त वा दृष्ट हो तथा सहमेश पूर्वोक्त प्रकारसे वली हो तो उस सह-