पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/९७

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"" भाषाटीकासमेता । (८९ ) ॥ मकी वृद्धि होती है और जो सहम शुभग्रह तथा स्वस्वामी से युक्त दृष्ट नहो. वह सहम निर्मल होता है फल देनेकी सामर्थ्य उसको नहीं होती है ॥ २८ ॥ ३ ॥ रथोद्ध०–अष्टमाधिपतिनायुतेक्षितंपापदृग्युतमथेत्थशालितम् संभवेऽपिविलयंप्रयातितत्तेनजन्मनिपुरेदमक्ष्यिताम् ॥ २९॥४॥ जो सहम वर्षलग्नसे वा अपने स्थानसे अष्टमभावेश से युक्त वा दृष्ट हो तथा पापग्रहसे युक्त वां दृष्ट हो यद्वा पूर्वोक्त अष्टमेशसे वा पापग्रहसे सहमेश इत्थशाली हो तो पूर्वोक्त शुभफलदातृलक्षणयुक्तभी हो तोभी निर्मल कहाता है फलदेनेकी सामर्थ्य नहीं होती है जन्ममें प्रथम इसी बलको देखलेना ॥ २९ ॥ ४ ॥ अनुष्टु० - आदौजन्म निसर्वेषां सहमानांबलाबलम् || विमृश्यसंभवोयेषांतानिवर्षे विचितयेत् ॥ ३० ॥ ५ ॥ सहमोंका प्रथम बल सहम बलादि सर्वप्रकार से सहमोंका बलाबल जन्ममें तदुत्तरवर्ष में देखके जिनका बलाधिक हो फल देनेकी सामर्थ्य हो उन्हें वर्षमें स्थापन करना जिनको फल देनेकी सामर्थ्य न हो उन्हें छोड- देना ॥ ३० ॥ ५ ॥ 1 अनु० - सबलेपुण्यसहमे धर्मवृद्धिर्धनागमः ॥ : शुभस्वामीक्षितयुतेव्यत्ययेव्यत्ययंविदुः ॥ ३१ ॥ ६ ॥ अब सहमोंके फल कहे जाते हैं. प्रथम पुण्यसहमका फल यह है कि पुण्य सहम पूर्वोक्त लक्षणोंसे बलवान् हो तो धर्मकी बुद्धि धनका आगमन होता है शुभग्रह स्वस्वामियुक्त दृष्ट होनेमें भी ऐसा हीं फल है जो इनसे विपरीत पूर्वोक्त प्रकारसे बलरहित तथा पापयुत दृष्ट हो तो फल भी विपरीत अर्थात् धर्म धन हानि होगी ॥ ३१ ॥ ६ ॥ अनु० - लग्नात्पष्टाष्टरिः फस्थंधर्मभाग्ययशोहरम् || शुभंस्वामिदृशा प्रांतसुखधर्मादिसंभवः ॥ ३२ ॥ ७ ॥ जो पुण्यसहम लग्न से ६ |८ | १२ इन स्थानों में हो तो भाग्य ( ऐश्वर्य ) यशका हरण करताहै और शुभग्रह स्वस्वामीसे युक्त वा दृष्ट •.